________________
चर्चासागर
[ ३६१
Sanise
सा विशेष यह है कि क्षत्रियोंको पाँच दिनका सूतक है, ब्राह्मणोंको यस दिनका सूतक है, वैश्यको बारह दिनका सूतक है और शूद्रको पन्द्रह दिनका सूतक है । सो ही प्रायश्चित्त प्रत्यमें लिखा है
पण दश वारण नियमा पण्णारस होइ तहय दिवसे हि ।
खत्तिय वंभा विस्ला सुद्दा हि कमेण सुद्धन्ति || इस अनुक्रमसे सूतक जानना चाहिये ।
लौकिकमें जो सती होती है उसके बाद रहनेवाले घरके स्वामीको उसकी हत्याका पाप छः महीने तक रहता है। छः महीने बाद प्रायश्चित्त लेकर शुद्ध होता है। जिसके घरमें कोई सतो हो गई हो उसको छः महीने पहले प्रायश्चित्त देकर शुद्ध नहीं करना चाहिये ।
afa कोई अपघात कर मर जाय तो उसके बाद रहनेवाले घरके स्वामीको यथायोग्य प्रायश्वित देना
चाहिये ।
का दूध प्रसूति दिनसे
पाह दिन पीछे शुद्ध होता है । गायका दूध प्रसूतिके दिनसे बस दिन बाद प्रसूतिके दिनसे आठ दिन बाद शुद्ध होता है इन सबका वृष ऊपर लिखे दिनोंसे
शुद्ध होता है। बकरीका दूध पहले शुद्ध नहीं होता।
इस प्रकार गृहस्थोंको संक्षेपसे सुलकका विचार समझ लेना चाहिये । सो ही मूलाधारको टोकामें लिखा है
सूतकं वृद्धिहानिभ्यां दिनानि दश द्वादश । प्रसूतिकास्थानं मासैर्क दिनानि पंच गोत्रिणाम् ॥ प्रसूतौ च मृते बाले देशान्तरे मृते रणे । सन्यासे मरणे चैव दिनैकं सूतकं भवेत् ॥ २ ॥ अश्वी च महिषी चेटी प्रसूता गो हांगणे । सुतकं दिनमेकं स्यात् गृहवाह्य े न सूतकम् ॥ ३॥ पुत्रादिसूतके जाते गते द्वादशके दिने । जिर्नभिषेकपूजाभ्यां पात्रदानेन शुद्धयति ॥ ४ ॥ दासी दासस्तथा कन्या जायते मरणे यदि । त्रिरात्रिं सूतकं ज्ञेयं गृहमध्ये तु दूषणम् ॥५॥ यदि गर्भ - विपत्तिः स्यात् स्त्रावणं चापि योषितः । यावन्मासं स्थितो गर्भस्तावद्दिनानि सूतकं ।।
દ્
GATA