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छोड़कर पक्षियोंका मांस भक्षण कर हो अपना पेट भरता है उसी प्रकार दुष्ट बुद्धिके लोग उत्तम-उसम पवार्यो
को छोड़कर मांस भक्षणका विधान करते हैं। जिनको नीच गति होनहार होती है उनके ऐसे ही नीच बुद्धि चिसिागर
उत्पन्न हुआ करती है ऐसे नील अनिवालों के जत्तम बुद्धि कभी नहीं हो सकती। ४१८]
ऐसे लोग ऊपर लिखे शास्त्रोंको कहकर अपने मिथ्या धर्मको पुष्टि करते हैं परन्तु पहली बात तो यह है कि श्राद्धकर्म कुछ मोक्ष देनेवाला नहीं है। यह तो स्वार्थी लोगोंने अपने स्वार्थ के लिये चलाया है। इसलिए वह कभी प्रमाणरूप नहीं हो सकता । कसाचित् यह कहा जाय कि हमारे वेदमें लिखा है सो भी ठीक नहीं है। क्योंकि जो जीवहिंसाका उपदेश दे वह वेव कभी नहीं कहा जा सकता। उसे तो बंधक-जीवोंका घात करने वाला कहना चाहिये भला जो 'यज्ञार्थ पशवः सष्टाः' अर्थात् पशुओंको यज्ञमें होमनेके लिये ही उत्पन्न किया है"!
इस महाहिंसाको पुष्टि करते हैं वे महाहिसक, महापाप रूप, घातक शस्त्रोंके समान समझे जाते हैं। इसलिये। । उनको बंध वा वेषक कहना चाहिये।
यहाँपर कदाचित् कोई वेदको माननेवाला यह कहे कि 'यशमे पशुओंको होमना हमारे वेदमे लिखा है । सो मन्त्रोंको आहुतियोंसे होमना बतलाया है। इसी प्रकार देवताको बलिदान देने के लिए होमके अन्समें वष।
करना भी होमके लिए है । अश्वा उस देवताके लिए है इसलिए ऐसी हिंसामें हिंसाका पाप नहीं लगता। ऐसे १ यज्ञोंको जो करता है अथवा कराता है अथवा जो बकरा, भैंसा, घोड़ा, मनुष्य आदि जीव होमे जाते हैं वे सब।
स्वर्गमें जाते हैं इसलिये हो यज्ञमें जीय होमनेका निषेध नहीं हैं। किन्तु कर्तव्य है ऐसा वेद कहता है' इस प्रकार वेद माननेवालेका कहना महाहिंसाके दोषको उत्पन्न करता है क्योंकि यदि बेद यह कहता है कि 'मंत्रपूर्वक
जीवोंका होम करनेसे पाप नहीं लगता" तो वेदका यह कहना मुसलमानोंके कहनेके समान हुआ। क्योंकि F मुसलमान भी यह कहते हैं कि हमारे कुराणको लिक्का जीवके ऊपर पड़नी चाहिये और उसको शास्त्रसे मारकर ॥ उसका मांस भक्षण करना चाहिये । इस प्रकार जोवको मारने और उसका मांसभक्षण करनेमें कोई दोष वा ॥ पाप नहीं है । लिक्का पढ़ लेनेके बाद फिर उसमें कोई दोष वा पाप नहीं रहता । यदि कोई जीव अपने आप मर जाय तो हम (मुसलमान ) उसे छूते भी नहीं हैं। लिक्का पढ़नेके बाद जो जोव मारा जाता है वह सोपा विहिश्त (स्वर्गमें ) जाता है। इस प्रकार देवका कहना और मुसलमानोंका कहना समान ही हुआ। वेद