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वर्षासागर ४८१ 1
उन तारणपंथियोंसे यदि कोई पूछता है कि ये तारण स्वामी कौन हुए है तो वे उत्तर देते हैं कि ने श्रेणिकजी महाराज पहले नरकसे निकलकर तीर्थकर रूप प्रगट हुए हैं। इस प्रकार उन्होंने अनेक प्रकार विरुद्ध वचनोंके द्वारा विपरीत मिथ्यात्व स्थापन किया है और उसका नाम तारणपंथ रक्खा है । यह तारणपंथ समैया । जातिमें चला आ रहा है, समैया जातिका अर्थ यह है कि इनमें कोई जुदी-जुदी जातियोंका व्यवहार नहीं है । । इनके धर्ममें जो कोई शामिल हो जाता है चाहे वह नीच जातिका हो वा ऊँच जातिका हो वह वही समैया ।
कहलाता है । उसीके साथ ये लोग रोटी बेटो आदिके देने लेनेका व्यवहार कर लेते हैं। इस प्रकार यह तारण स्वामोके मतको तारणपंथको उत्पत्ति एक समैयाके मखसे सुनकर लिखी है । सो समझ लेनी चाहिये।
पहले जो अर्द्धफास्कीका श्वेताम्बर मत लिख आये हैं उसमें भी कितनी हो विपरीत बातें उत्पन्न हुई। उमको जाननेके लिये थोडीसी यहाँपर भी लिखते हैं।
श्रीमहावीर स्वामीके मोक्ष मये बाव धीमहि त्वामी, सुबमावा और अंजूस्यामी में तीन तो केवली हुए। ये तीनों केवलो बासठ वर्षमें हुए। तबनंतर सौ वर्षमें विष्णुकुमार, नदिमित्र, अपराजित, गोबर्द्धन और भाबाहु ये पांच द्वादशांगके धारक श्रुतकेवलो हुए। यहांतक भगवानके मोक्ष जानेके बाद एकसौ बासठ वर्ष व्यसोत हुए थे। इनमें से पांचवें श्रुतकेवलो भद्रबाहुके समयमें उज्जयिनो नगरीमें राजा चन्द्रगुप्त राज्य करता था। उसने रात्रिमें कल्पवृक्षको शाखाका भंग होना आदि महा अशुभको सूचना देनेवाले सोलह स्वप्न देखे। प्रातःकाल उनके फल सुननेको इच्छासे कुछ चितवन करता हुआ बैठा ही था कि इतनेमें ही किसीने आकर भद्रबाहके आनेको बधाई दी। मुनिराजको आये हुए जामकर राजाको बहुत ही हर्ष हआ। उसने मुनिराजके। समीप जाकर उनके दर्शन किये, वंदना की, पूजा को और धर्मवृद्धि ग्रहणकर लेनेके बाद उसने रातमें देखे हर सोलह स्वप्नोंका फल पूछा। भद्रबाइने भी राजाके सामने उनके होनहार फल कहे । भद्रबाहने यह भी समझ । लिया कि यहाँपर बारह वर्षका महा दुर्भिक्ष पड़ेगा। उनके साथ चौबीस हजार साधुओंका संघ था उन सबसे । भद्रबाहुने ये समाचार कहे । तथा कहा कि यहां संयम पलना कठिन है इसलिये संयमको रक्षाके लिये अन्य वेशमें चलना चाहिये । आचार्यको यह बात सुनकर बारह हजार मुनि तो उनके साथ हो लिये और बाकोके बारह हजार मुनि सेठ कुवेरमित्र, जिनदास, माधवक्स और बंधुमित्र आदि सेठोंके आग्रहसे वहींपर रह गये। । दुष्कालके पड़ते हो वहाँपर बहुतसे लोग बाहरसे आ गये जिससे ऊपर लिखे सेठोंके घरका सब अन्न निबट गया।
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