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धासागर ४८६
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न्यामकबरामरामबरन्ड
२६. निन्वक जीवोंके मारनेमें पाप न गिनना। २७. युगलियोंको नरकगति होना । २८. भरतने अपनी बहिन ब्राह्मोसे विवाह करनेका विचार किया था ऐसा मानना । २९. वीक्षा लिए बिना ही अर्थात् महावत धारण किये बिना ही भरत चक्रवर्तीको केवल भावनाओंके
बलसे आरोसा भवन में हो केवलज्ञानको उत्पत्ति मानना । ३०. शिष्य झालको समझानेके लिए श्रीमहावीर स्वामीका कुम्हारके बाड़े समवशरण सहित रहना
मानना । ३१. अर्जुनको स्त्री द्रोपदोफो सोलहसे तीनमें सती कहना और उसको पांचों भाइयोंकी स्त्री मानना ।। ३२. एक बूढ़ा गुरु किसी कुंवारे ( अविवाहित ) शिष्यके कन्धे पर बैठा किसी मार्गमें जा रहा था।
गुरुने देखा कि वह शिष्य ईसमितिसे गमन नहीं कर रहा है। इसलिए उस गुरुने उस शिष्यके शिरमें ओघेके बण्डको मार लगाई परन्तु उस शिष्यने क्षमा धारण करते हुए यह मार सह लो ।। इसीसे उस शिष्यको उसी समय केवलज्ञान उत्पन्न हो गया और गुरु कन्धे पर बैठा ही रहा। केवलज्ञान होने पर गुरूने पूछा कि क्या तो केवलज्ञान उत्पन्न हो गया है इससे मालूम होता है तू ईर्यासमिति सहित चलता है। तब शिष्यने कहा महाराज आपके प्रसादसे ही केवलज्ञान उत्पन्न हुआ है । इतने कह-सुन लेने पर उस गुरुने उस केवलज्ञानी शिष्यका शिर कूटना बन्द किया और
फिर वह उसके कन्धेसे नोचा उतरा। इस प्रकार मानना। ३३. श्रीमहाबोर स्वामीने अपना विवाह किया था, उनके पुत्री हुई थी और उसका विवाह जयमिली।
नामको जातिके मालीके साथ किया मानना । ३४. कमिल नारायणको केवलज्ञान उत्पन्न हुआ मानना और उसी अवस्था में उसका नृत्य करना मानना। ३५. वसुदेयके बहत्तर हजार रानियों का मानना । ३६. साधु, शूद्रके घरसे आहार, पानी लाकर खा लेवे तो उसमें कोई दोष न मानना। यदि कोई मांस
भी दे देवे तो उसको रक्खे नहीं केवल प्रायश्चित्त लेकर शुद्ध हो जाय ऐसा मानना ।
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