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पर्चासागर [४९३]
चाहानाब
जयमल्ल ३, पैमा ४, जगरूप ५, कान्हा ६, सांवला ७, मनरूप ८, रतना ९, नायू १०, माणी ११, चौथ
२. भारमल्ल १३. केशों १४, रामचन्द्र १५. लच्छो १६ गमाना १७ टीकम १८ जसरूप १९, । वित्रा २०. माना २१. पानाचन्द २२ इस प्रकार होनकली बाईस यति और मिल गये। इसीलिये ये सब बाईस Hोलाके साधु कहलाते हैं। इन्होंने अनेक प्रकारको विपरीत बातें निरूपण की हैं ये सब सम्यग्जानियोंको श्रद्धान। । ज्ञान, आचरण करनेके सर्वथा अयोग्य हैं । यह कथन हमने मरुस्थलके ( मारवाड़के ) कुचेरा गांवके रहनेवाले
खरतरगच्छ को बड़ो शाखाके गच्छके ज्ञानकोतिनामके यतिके शिष्य हेमकीतिकृत 'हेम विलास' नामको भाषा । छन्दको ढालसे लिखा है। इसका विस्तार जानना हो तो वहाँसे जानना ।
तदनन्तर सम्वत अठारहसौ तेईसकी सालमें ऊपर लिखे हुए दिया मतमें एक रघुनाथ नामके साधुका शिष्य भीष्म नामका टूढ़िया साधु था। उसने किसी एक समय मारवाडके बगड़ी गांव में चौमासा किया। वहाँपर उसने अपने गुरुसे ईर्ष्या को, गुरुकी आज्ञाका लोप किया उससे जुदा हो गया और उसने अपने नामका जुदा ही पंथ चलाया। उसने उस अपने नये पंयमें जैनधर्मसे तथा दिया मतमें भी बहुत-सी विरुद्ध और विपरीत बातें निरूपण की। उसने बतलाया कि कोई मांसभक्षी हिंसक जीव किसी दूसरे जीवको । पकड़कर मारता हो तो उसे छुड़ाना वा बचाना नहीं चाहिये। जो छुड़ाता है वह दूसरेके ( पकड़नेवाले के ) प्राणोंको पीड़ा देता है । इसलिए उसे अठारह पाप लगते हैं। वे कहते हैं कि जो कोई किसी जोवके काम या भोगमें अन्तराय करता है तो उसके अन्तराय कर्मका आलव होता है इसलिए किसीके द्वारा पकड़े हुए जीवको नहीं छुड़ाना चाहिये। इसी प्रकार यदि किसो मांवमें अग्नि लग गई हो वा और कोई घोर उपद्रव आ गया हो और उससे अनेक जीव मरते हों । गाय, भैंस, घोड़ा, बकरे, मनुष्य, पशु-पक्षी आदि जीवोंके समूह मरते ।
हों तो उनको बचाना नहीं चाहिए का बहानेका कोई उपाय नहीं करना चाहिये। उन्हें मरने देना चाहिये, है | दुःख सहन करने देना चाहिये । क्योंकि उनके कर्मोका ऐसा हो उदय आया है सो अपना फल देकर निर्जरित
हो जायगा। इस प्रकार ( मरनेपर ) उन कर्मोको निर्जरा हो जानेपर वे जीव सुलो हो जायेंगे। जो लोग क्या पालन करनेके लिये उन्हें बचाते हैं उन्हें अठारह पाप लगते हैं। इस महाहिंसामयी कथनके साथ-साथ वे । लोग यह भी कहते हैं कि यदि कोई अपने कुटुम्बका हो या कोई साधु हो वा श्रावक हो तो उसे बचा लेना
चाहिये । इस प्रकार उसने बहुत-सी निवंय और विपरीत बातें बतलायीं । उसने जिनप्रतिमापूजनका भी निषेष
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