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चर्चासागर
जातिका सर्प) को आदि लेकर महापापके उदयसे अधिकसे अधिक सात बार जन्म धारण करते हैं। तीसरे मेधा नामके नरकमें दुष्ट पक्षो आदि जोध उत्कृष्ट पापके उदयसे छह बार जाकर जन्म लेते हैं। चौथे अंजना नामके नरक साविक तिर्यच महापापके उदयसे पांच बार उत्कृष्ट जन्म धारण करते हैं । पांचवें अरिष्टा नामके नरक सिंहादिक जीव अधिकसे-अधिक चार बार जाकर जन्म लेते हैं। मघवी नामके छठे नरकमें मनुष्यणी स्त्री अधिकसे अधिक तीन बार जन्म लेती है।माघवी नामके सातवें नरकमें मनुष्याविक जीव अधिक
से अधिक दो बार जन्म लेते हैं । इस प्रकार ये जीव मिथ्यात्वाविक महापाप फोसे तथा हिंसादिक पापोंसे । उत्पन्न हुए कर्मोंके सत्यसे नरकोंमें उत्कृष्ट जन्मोंको धारण करते हैं। तथा वहाँपर सागरों पर्यन्तकी आयु तक में छेबन, भेदन, शूलारोपण, ताडन, पोडन आविके महा कुःख भोगते हैं। उन दुःखोंको भगवान् सर्वजदेव हो में जानते हैं । इसलिये भव्यजीवोंको मिथ्यात्वाविक महापापोंका त्याग कर देना चाहिये, सम्यग्दर्शन धारण करना । चाहिये तथा अपने आत्माका कल्याण करनेके लिये अहिंसा आदि प्रतोंको धारण करना चाहिये।
प्रश्न—यहाँपर नरकोंमें जानेको जो संख्या लिखी है सो नरकोंसे निकल कर अन्य जन्मोंको धारण करता है फिर नरकमें जाता है । सो नरकसे निकल कर किन-किन मतियोंमें जन्म लेता है।
_समाधान-नरक गतिसे निकल कर मनुष्य और तिर्यञ्चगति ही प्राप्त होती है। मनुष्य वा तियंञ्च गतिको पाकर बाकी बचे हुए पहलेके पापफर्मके उदयसे या उस भवमें किये हुए पापकर्मोके उदयसे फिर नरकहै में जाता है । सातवें नरकसे निकल कर तिर्यञ्च ही होता है । सो हो सिद्धांतसारमें लिखा हैहै उत्कृष्टेन स्वसंतत्या सोऽसंज्ञी प्रथमावनौ। अष्टवारान् क्रमाद् गच्छेत्सरीसृपोतिपापतः ॥१॥
सप्तवारान् द्वितीयायां तृतीयायां खगो ब्रजेत् ।षड्वारांश्च चतुर्था हि पंचवारान् भुजंगमः ।। पंचम्यांच चतुर्वारान् याति सिंहो निरंतरम्।षष्ट्यां योषित्रिवारान् सप्तम्यां वारद्वयं पुमान्॥ श्वभ्रेभ्यो निर्गता एते तिर्यग्नरगतिद्वये। कर्मभूमिष जायन्ते गर्भजाः संज्ञिनः स्फुटम् ॥४॥
२१६-चर्चा दोसो सोलहवीं प्रश्न-पहले नरकसे लेकर सातवें नरक तक तीस लाख आदिके क्रमसे चौरासी लाल बिल हैं।
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