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वर्यासागर [१५]
न्याTERamaeatmentreatment
श्रीपार्श्वनायपर सात दिन तक बराबर उपसर्ग होता रहा।सात दिनके बाद धरणेन्द्र पद्मावती आये और उप-1 सर्ग दूर किया । तदनंतर भगवानको केवलज्ञान उत्पन्न हुआ सो धरणेन्द्र पावतो भी पहले क्यों नहीं आये।। इसका कारण क्या है?
समाधान यदि धरणेन्द्र पनावतो उसो समय आ जाते तो इतने दिन तक उपसर्ग कैसे रहता ? वे अपने पहले बंधे हुए फर्मोक फलको किस प्रकार भोगते ? तथा उस उपसर्गसे जो अनंत कोको निर्जरा हुई । थी सो कैसे होती ? तथा बिना कर्मोको निर्जराके इतनी शोघ्रतासे केवलज्ञान किस प्रकार उत्पन्न होता ? इसलिये कहना चाहिये कि इनके लिये ऐसे ही निमित्त मिलने थे। जिससे कि इतना उपसर्ग हो और नियत समयपर केवलज्ञान हो।
दूसरी बात यह है कि इस भरतक्षेत्रमें असंख्यात उत्सपिणो अवसपिणी काल बीत जानेपर एक हुंगवसर्पिणो काल आता है। उसमें उस हुंगवसपिणो कालके दोषसे कितनी ही बातें विपरीत होती हैं। लिखा, भी हैहंडावसर्पिणीकाले णियमेण भवंति पंच पाषंडा। चक्किहरमाणभंगो उवसग्गोजिणवरंदाणा
अर्थात्---असंख्यात उत्सर्पिणी तथा अवसर्पिणो कालके बोतने पर इस भरतक्षेत्रमें एक हुंडावसर्पिणी काल आता है। उसमें नियमसे पंच पाखंड बढ़ जाते हैं। एकान्त, विनय, विपरीत, संशय, अज्ञान ये पांचों मिथ्यास्व बढ़ जाते हैं । चक्रवर्तीका का मान भंग होता है और तीर्थंकरोंको छनस्य अवस्थामें उपसर्ग होता है। यह सब हुंडावसर्पिणीका माहात्म्य है। इसका विशेष वर्णन सिद्धांतप्रवीपकमें लिखा है । यथाउत्सर्पिण्यवसर्पिण्यसंख्यातेषु गतेस्वपि । हुंडावसर्पिणीकालः इहायाति न चान्यथा ॥७३॥ तस्या हुंडावसर्पिण्यां पंचपापंडदर्शिनः । शलाकाः पुरुषा जाताः सद्य भेदा अनेकशः ॥७॥ जिनशासवमध्ये स्युः विपरीता मतान्तराः।चीवरायावता नियाः सग्रंथाः संति लिंगिनः ॥७५ उपसर्गा जिनेन्द्राणां मानभंगाश्चचक्रिणाम् । कुदेवमठमूर्त्याद्याः कुशास्त्राणि अनेकशः॥
__भरतस्य चाहुबलिना मानभंगः प्रजायते । ___ इस प्रकार इस हुंडावसपिणो कालके ऊपर लिखे हुए पांचों मिथ्यात्वोंको वृद्धि हुई है। शलाका