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वर्षासागर
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उनके फल भोगनेवाला अन्य है इस प्रकार प्रत्येक पदार्थके स्वरूप क्षणिक माननेवाले एकान्त मिध्यात्वी हैं । ये freandi कहते हैं कि यह ओव पृथिवी, जल, तेज, वायु, आकाश इन पाँच तत्वोंसे बना है । अथवा पच्चीस तत्वोंसे बना है। मछली, हिरण, बकरा, भैसा, सुअर, मुर्गा, कबूतर, लावा, तीतर, मोर आदि त्रस जीवोंके भक्षण करने में कोई पाप नहीं है। इस प्रकार कहनेवाले अत्यन्त दुःख देनेवाली मिथ्याबुद्धिको धारण करनेवाले तथा दुष्टोंके कहे हुए कल्पित वचनोंको धारण करनेवाले सब एकांत मिथ्यात्व समझने चाहिये |
जो केवली भगवानको फलाहार मानते हैं, जो स्त्री पर्याय में महाव्रत धारण करना, केवलज्ञानका उत्पन्न होना और उन स्त्रियोंको मोक्षकी प्राप्ति होना मानते हैं । जो कहते हैं कि श्री महावीर स्वामीका गर्भ किसी ब्राह्मणीके उवरमें हुआ था फिर इन्द्रने बहाँसे उठाकर त्रिशलाके उदरमें रक्खा । श्रीमहावीर स्वामीको समवशरण में भी उपसर्ग हुआ । समवसरणमें विराजमान रहते हुए भी महावीरस्वामीके रक्तातिसार रोग हो गया। इस प्रकार जो विपरीत कथन करते हैं जो जिनलिंगको धारण करनेवाले महावती माधुओंके भी दंड, वस्त्र, पात्र आदि चौदह उपकरण मानते हैं । इस प्रकार माननेवाले श्वेताम्बर सब संशयमिष्यत्यो समझने चाहिये | इनका विशेष वर्णन श्री भद्रबाहुचरित्रसे तथा वसुनंदिधविकाधारको वचनिकासे तथा और भी अनेक शास्त्रोंसे स्पष्ट जान लेना चाहिये ।
जो जीवोंकी हिंसामें पुण्य मानते हैं, यश में बकरा, भंसा, घोड़ा, मनुष्य आदिको मार कर होमते हैं, जो देवताओंपर बकरा, भैंसा आदि जीवोंको मार बलिदान देते हैं तथा इसी प्रकारके जीवघात करनेमें जो पुण्य मानते हैं। जैसा कि उनके यहाँ लिखा है---
देवान् पितॄन् समभ्यर्च्य खादन्मांसं न दोषभाक् ।
अर्थात् देवता और पितरोंको बलिदान वेकर फिर उस मांस खानेमें कोई दोष नहीं है इस प्रकारके यश वा बलिदान करने वा करानेवालोंको स्वर्गकी प्राप्ति होना मानते हैं, जो तोर्थोपर स्नान करने मात्रले आत्माकी शुद्धि मानते हैं। जो क्रूर कर्म करनेवाले या महापापरूप आरम्भ करनेवाले कुवेवोंकी पूजा भक्ति करते हैं, कामी, क्रोधी, लोभी तथा महा आरम्भ परिप्रहधारी गुरुओं की सेवा भक्ति करते हैं। जो गाय, हाथी, घोड़ा, बैल, भैंस, भैंसा आदि पशुओंकी पूजा करते हैं, जो दुष्ट सर्प, कौआ, उल्लू, कुत्ता आदि पशुओंकी पूजा
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