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भोग कर मुनिव्रत धारण कर तथा तपश्चरण कर केवलझान पाकर मोक्ष जाते हैं। अर्थात् ऊपर लिखे हुए।
सौधर्म इन्द्रादिक देव एक भवावतारी जीव हैं । एक मनुष्य भव धारण करके ही मोक्ष जाते हैं। नौ अनुविशोंके । सागर बक, पाचा पचात्तरा
व, पाँचों पंचोत्तरोंके देव वहाँसे चयकर नारायण, प्रतिनारायण पदको कभी नहीं पाते हैं । इस प्रकार तिर्यश्च । मनुष्य और भवनत्रिक के देव अपनी आयुके क्षय होनेपर वहाँसे चयकर शलाका पुरुष कभी नहीं होते अर्थात् । चौबीस तीर्थकुर, बारह चक्रवर्ती, नौ नारायण, नो बलभद्र और नौ प्रतिनारायण इन तिरेसठ शलाका पुरुषोंकी
पदवीको कभी प्राप्त नहीं होते । तथा विजयादिक विमानोंके रहनेवाले अहमिन्द्र तथा अनुदिशोंके अहमिन्द्र दो मनुष्य भव धारण कर मोक्ष जाते हैं । अर्थात् वहाँसे चयकर मनुष्य होकर फिर विजयादिकमें जन्म लेकर फिर मनुष्य होकर मुक्त होते हैं । सो ही मोक्षशास्त्र में लिखा है
विजयादिषु द्विचरमाः। यही सब बात सिद्धांतसार प्रदीपकके पन्द्रहवें अधिकारमें लिखी है। सौधर्मेन्द्रस्य दृष्ट्याप्ता महादेव्यो दिवश्च्युताः।
सर्वे च दक्षिणेन्द्रा हि चत्वारो लोकपालकाः॥३७७॥ सर्व लोकांतिका विश्वे सर्वार्थसिद्धिजामराः। निर्वाणं तपसा यान्ति संप्राप्य नृभवं शुभम्॥ नवानुत्तरजा देवाः पंचानुत्तरवासिनः । ततश्च्युत्वान जायन्ते वासुदेवा न तद्विषः।।३७६ तियंचो मानवाः सर्वे भावनादिनिजामराः । शलाकाः पुरुषाः जातु न भवन्स्यमरार्चिताः॥ विजयादिविमानेभ्योऽहमिन्द्रा गत्य भूतलम् । मर्त्यजन्मद्वयं प्राप्य ध्रुवं गच्छन्ति नितिम्॥
२२४-चर्चा दोसौ चौबीसवीं प्रश्न-इस मध्यलोकमें जम्बूद्वोपसे लेकर स्वयंभूरमण समुद्र तक कालचक्रका बर्ताव किस प्रकार है। । अर्थात् सुखमा-सुखमा आदि छहों कालोमेंसे कौन-कौन काल कहाँ वर्तता है ?
समाधान-दाई वीपके पंचमेरु सम्बन्धी पांचों भरस-क्षेत्र और पांचों ऐरावत क्षेत्रों में अनुक्रमसे है " उत्सर्पिणी और अवसर्पिणो कालके छहों कालोंका बरताव रहता है अर्थात् अवसर्पिणो कालका पहला, दूसरा,