________________
Seasoरानाम्यरचना
पितर लोगोंको स्वर्गको प्राप्ति होती है तो फिर पुत्रने जो मांसदानके लिये जीवोंका वध किया वा कराया, मांस पिंस दिया तया मांसका भक्षण किया उसके पापसे पितरोंको दुर्गति को भी प्राप्ति होनी चाहिये। हे भारत ! जो जोव मांस भक्षण करते हैं वे चाहे जितना रामकृष्ण आविका नाम उच्चारण कर जप करें, चाहे जितना होम करें, चाहे जितने स्पिन करें, पाहे जितनी शोमात्रा करें और चाहे जितने तीर्थ स्नान करें परंतु । उनका सब करना व्यर्थ है, मिथ्या है । इस प्रकार धर्मशास्त्र और पुराणों में केवल मांसभक्षण के हो अनेक दोष बतलाये हैं। भारतके शांतिपर्व में लिखा हैन देयानि न ग्राह्याणिषड्वस्तूनि पंडितः। अग्निर्मधु विषं शस्त्रं मयं मांस तथैव च ॥ १ ॥
___ अर्थ-विधारशील पंडितोंको अग्नि, शहद, विष, शस्त्र, म और मांस ये छह वस्तुयें न तो किसोको देनी चाहिये न किसीसे लेनी चाहिये । जब इन छहों पदार्थोका लेन देन भी निषिस बतलाया है तब फिर मांस भक्षण करना वा कराना किस प्रकार संभव हो सकता है । फिर भी जो लोग मानते हैं सो सब मिथ्या है।
इसके सिवाय भी भारतके शांतिपर्व में लिखा हैएकतश्चतुरो वेदा ब्रह्मचर्य च एकतः। एकतः सर्वपापानि मद्यमांसं च एकतः ॥ १॥ न गंगा न च केदारं न प्रयागं न पुस्करम् । न च ज्ञानं न व ध्यानं न तपो जपभक्तयः ।२।।
न दानं न च होमाश्च न पूजा न गुरौ नुतिम् । तस्यैव निष्फलं यान्ति यस्तु मांसं प्रखादति । तिलसर्षपमात्र व यो मांस भक्षयेन्नरः । स याति नरकं घोरं यावच्चन्द्रदिवाकरौ ॥४॥
जिस प्रकार एक ओर चारों वेद हैं और एक ओर ब्रह्मचर्य है उसी प्रकार एक ओर संसारभरके समस्त। पाप है और एक ओर मद्यमांसका सेवन है। भावार्थ-ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेव ये चार वेद
हैं। सो चारों हो वेद तो एक ओर हैं और स्त्री मात्रका त्याग करनेरूप ब्रह्मचर्य एक ओर है इनमें भी चारों P वेवोंसे शीलवतकी महिमा अधिक है जिस प्रकार चारों वेदोंसे ब्रह्मचर्य की महिमा अधिक है उसी प्रकार संसार
भरके समस्त पापोंसे मामास सेवनका पाप अधिक है । इससे सिद्ध होता है कि मद्य मांस सेवन करनेसे सबसे अधिक पाप होता है।
[४२०