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चर्चासागर 1 ४३१ ]
तीनोंको ही अच्छी गति नहीं मिल सकती परन्तु उनका यह कहना कुछ अंशोंमें सत्य है । लेखक ध्यान तो कुछ ध्यान ही नहीं है और न वह कुछ प्रशंसा के योग्य है क्योंकि उनकी सब क्रियाएं उलटी हैं। इसलिये वे सर्वथा अयोग्य हैं । भागवतो पुरुष पर निन्दा के महापापसे नरक जाना ही चाहिये। भागवती पुरुष जैनधर्मसे भारी शत्रुता रखते हैं। अरहन्तवेव और जैनधर्मको बड़ी निन्दा करते हैं। जैनधर्मसे द्वेव करते हुए अनेक प्रकारके विपरीत कार्य करते हैं। 'न गच्छेज्जैन मन्दिरम्' अर्थात् 'जैनियोंके मन्दिरमें कभी नहीं जाना चाहिये।' यहां तक वे उपवेश देते हैं। सां ऐसे पुरुषोंको नरक होना ही चाहिये । इसमें कोई सन्देह नहीं । परन्तु जैनियोंकी aur अपवित्रताके दोषसे नरक जानेवाली बतलाई सो ठोक नहीं है। क्योंकि सब जैनी अपवित्र नहीं है। कुछ केवल नाम मात्र जैनी कहलाने वाले श्वेताम्बराविक ऐसे हैं जिन्होंने अपवित्र आचरणोंका निरूपण किया है। उन्हीं श्वेताम्बरों में परस्परके रागद्वेषसे तथा क्रोध, मान आदि कषायोंसे विजयगच्छ, खरतरगच्छ, पुण्यागच्छ आषि अलग-अलग चौरासी गच्छ हो गये हैं। उन्होंमें एक लोकागच्छ हुआ था उसने अनेक प्रकारके हीनाचरण स्थापन किये हैं। उस लोकागच्छके उत्पन्न होनेके कितने हो वर्ष पीछे ढूंढिया साधु हुए हैं। उनके पीछे एक भीष्म नामका डूढिया हुआ था जिसने तेरह ढूंढियाओंका अलग समुदाय बनाकर अपने नामका भीष्मपंथ अथवा तेरहपंथ चलाया । इस प्रकार इन लोगोंने अलग-अलग धर्म चलाये है और होनसे होन, महा अपवित्र, महा अशुद्ध आचरणोंका निरूपण किया है। ये लोग दया पालनका तो उपवेश देते हैं परन्तु महा अशुद्ध रहनेके कारण उनके द्वारा अनेक जीवोंकी हिंसा होती है। इसलिये ऐसो हिंसा करनेवाले इंडिया आदि जेनी नरकके पात्र है ही एक ढूंढियाओंके निद्य आवरणोंको देखकर सब जैनी ऐसे अपवित्र नहीं है। ऐसा जानकर जीवोंकी दया सदा पालन करते रहना चाहिये । संसारमै जीव दया ही मुख्य धर्म है ।
यहाँपर कदाचित् कोई यह कहे कि संसार में जीवों को दया पल कैसे सकता है । क्योंकि बिना आहारके तो कोई जीव जीवित रह ही नहीं सकता। परन्तु उसका यह कहना भो ठीक नहीं है। क्योंकि जिसने जीवोंकी रक्षा हो सकती है उतने जीवोंको रक्षा जरूर करनी चाहिये । श्रस जोवोंकी रक्षा करना तो मनुष्य मात्र का धर्म है तथा अपने भाव सब जीवोंको रक्षा करनेके रखने चाहिये। बहुतसे आरम्भका तो त्याग कर देना ही चाहिये। तथा अल्प आरम्भमें अपने भावोंसे महा हिंसाका त्याग कर देना चाहिये । संसारमे यही सार है। और सब असार है ।
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