________________
सागर ४०३]
grease-memaSHOLE-HeremRWANSITARATHI
प्रश्न-इस णमोकार मंत्रमें नमः शब्द है । इसके योगमें चतुर्थो विभक्ति होती है । सो तुमने द्वितीया और षष्ठोका रूप क्यों लिखा है। चतुर्थी विभक्तिका हो रूप लिखना चाहिये।
___समाधान-चतुर्थो विभक्ति भी होती है परंतु द्वितीया, षष्ठीका निषेध नहीं है । आगे प्रश्नके अनुसार चतुर्थो विभक्तिका भी रूप दिखलाते हैं।
णमो अरहंताणं-नमोहंदभ्यः अरहंतोंके लिये नमस्कार हो । णमो सिद्धाणे नमः सिद्धेभ्यः सिद्धोंके लिये नमस्कार हो। णमो आइरिआणं नमः आचार्येभ्यः आचार्योंके लिये नमस्कार हो । णमो उवज्झायाणं नमः उपाध्यायेभ्यः उपाध्यायोंके लिये नमस्कार हो । णमो लोए सम्बसाहूणं नमः लोके सर्वसाधुभ्यः लोकमें समस्त साधुओंके लिये नमस्कार हो। इस प्रकार द्वितीया चतुर्थी और षष्ठी तीनोंके रूप सिद्ध होते हैं।
अरहंत, सिद्ध, भाचार्य, उपाध्याय साप इन पांचोंको परमेष्ठो कहते हैं । पर शब्दका अर्थ उत्कृष्ट है। #मा शब्दका अर्थ लक्ष्मी है। इन दोनोंके मिलानेसे परम शब्द बनता है । इसका अर्थ उत्कृष्ट लक्ष्मी होता है। इसके आगे उसको सप्तमीका एकवचन परमे बनता है । इसके आगे षष्ठी शब्द है जो स्था धातुसे बना है ।
स्था पातुका अर्थ रहना वा ठहरना है। जो उत्कृष्ट लक्ष्मीमें ठहरें, निवास करें उनको परमेष्ठी कहते हैं। । संसारमें सबसे उत्कृष्ट लक्ष्मी स्वात्मस्वरूप है, जो अपने शुद्ध आत्मामें ठहरे निवास करें उनको परमेष्ठी कहते हैं ।। र अरहतादिक पांचों ही अपने शुद्ध आत्मामें निवास करते हैं इसलिये घे पांचों ही परमेष्ठी कहलाते हैं। "अर्ह
तादि पंचानां परमेष्ठीनां संहारः इति पंचपरमेष्ठी" ऐसी इसको निरुक्ति है । इस प्रकार ये पांचों हो परमेष्ठी। कहलाते हैं।
आगे इन परमेष्ठियोंके गुण बतलाते हैं। अरहता छीयाला सिद्धा अट्टेव सूरि छत्तीसा । उवज्झाया पणत्रीसा अठवीसा होंति साहणं ॥
अरहंत भगवानके छपालोस गुण हैं उनमेंसे दस जन्मके अतिशय, दस केवलज्ञानके अतिशय और । चौदह देवकृत अतिशय ऐसे चौंतीस अतिशय हैं, आठ प्रातिहार्य हैं और चार अनंतचतुष्टय हैं। इस प्रकार
छयालीस गुण होते हैं। भगवान अरहंत परमेष्ठी समवसरणको बाह्य लक्ष्मीसे सुशोभित हैं और अनन्त- । चतुष्टयरूप अंतरंग लक्ष्मोसे सुशोभित है वोनों प्रकारको लक्ष्मीसे सुशोभित होनेके कारण भगवान अरहंतदेव परमेष्ठी कहलाते हैं।