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करना बतलाया है। उनके शास्त्रों में ऐसे महापापोंका निषेध कहाँ-कहाँ लिखा है सो यहाँ प्रसंग पाकर थोडासा लिखते हैं।
भारतमें लिखा है-मयका पोना, मांस भक्षण करना, रात्रिमें अन्न, पान, लेा, स्वाध आदि चारों पचासागर [१४] प्रकारके आहारका भक्षण करना, कंदमूल खाना महापाप है। जो कोई पुरुष इनका सेवन करता है उसकी
तीर्थयात्रा, जप, तप आदि सब व्यर्थ होता है । उनके यहाँ सब अड़सठ तीर्थ माने हैं सो जो पुरुष मांस, मद्य, रात्रिभोजन, कंदमूल आदिका सेवन करते हैं उनको अजसठ तीर्थोंको यात्रा व्यर्थ होती है । राम, कृष्ण, परमे। श्वर आदिका जप सब व्यर्थ होता है। गायत्री मंत्रका जप भी सब व्यर्थ होता है। तथा चान्द्रायण व्रत तथा और ना मा पारित करानेक प्रकारके कष्ट देनेवाले तप सब व्यर्थ हो जाते हैं। सो ही भारतमें। लिखा हैमद्यमांसाशनं रात्रौ भोजनं कंदभक्षणम् । ये कुर्वन्ति वृथा तेषां तीर्थयात्रा जपस्तपः॥
__उसीमें आगे लिखा मद्य, मांस भक्षण करनेवाले वा रात्रि भोजन करनेवालोंके एकादसो व्रत का उपवास करना नारायणके मंदिरमें जागरण करना, पकरको यात्रा करना और चंद्रायणं तप करना आदि सब व्यर्थ। हो जाता है। जबतक वह मद्य मांसाविकका त्याग नहीं करता तब तक उसको जप, तप, व्रत, उपवास आदिका कोई फल नहीं मिलता । मद्य मांसाविकका त्याग करनेसे ही इनका फल मिल सकता है । सो ही भारतमें। लिखा है_वृथा एकादशी प्रोक्ता वृथा जागरणं हरेः । तथा च पुष्करीयात्रा वृथा चंद्रायणं तपः॥
मनुस्मृतिमें लिखा है जो कोई जीवोंकी हिंसा करता है उसके न तो ध्यान हो सकता है, न स्नानसे शुद्धि हो सकती है, न वह दान दे सकता है । तथा न यह शुभ क्रियाएँ कर सकता है । हिंसा करनेवालेके इन ! || सब बातोंका अभाव हो जाता है। यदि वह इन क्रियाओंको कर भी डाले तो भी जीवघात करनेसे उसका सब
किया हुआ निष्फल हो जाता है। सो हो मनुस्मृतिमें लिखा है। न च ध्यानन च स्नानं न दानेन च सस्क्रियाः। सर्वे ते निष्फलं यांति जीवहिंसा करोति यः॥
भारतमें लिखा है-जो प्राणी बकरा, हिरण, सांभर, गोवड़, सूअर आदि पशुओंका घात करता है ।
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