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मिथ्यात्वाथप्रमत्तान्तगुणस्थानेषु सप्तसु । प्रमत्तवन्तजीवानां सन्ति संहननानि षट् ॥
अपूर्वकरणाभिख्येऽनिवृत्तिकरणाये । सूक्ष्मादिसापरायाख्ये य पशांतकषायके ॥२५॥ वर्षासातर श्रेण्यामुपशमाख्यां तिष्ठतां योगिनां पृथक । त्रीणि संहननानि स्युरादिमानि हढानि च ॥
अपूर्वकरणाख्ये चानिवत्तिकरणाभियों । सूक्ष्मादिसापरायाख्य क्षीणकोयनामनि ॥ २७॥ सयोगे च गुणस्थाने झाधि संहननं भवेत्
२०३-चर्चा दो सौ तीसरी प्रश्न--श्री तीर्थकर केवलोके समवसरणमें पहले दूसरे कोट के बोचमें चारों ओर अशोक बन, पम्पक वन, आम्रवन और सप्तच्छा बन बतलाये हैं जो कि बहुत भारी शोभाको धारण करते हैं। उनमें से एक-एक वृक्ष भगवान अरहंत वेवकी प्रतिमासहित विराजमान है जिसको चैत्यवृक्ष कहते हैं । सो अशोक, चंपक और आनके। वृक्ष तो देखे सुने जाते हैं परन्तु सप्तच्छव कौनसा वृक्ष है और वह कहाँ उत्पन्न होता है ।
समाधान-सपासछव सावड्य अथवा सातवीको कहते हैं। इसके पत्ते बड़े-बड़े होते हैं और एक पसा सात-सात पत्तोंके आकारका होता है । ऐसे पत्ते उस वृक्ष पर बहुतसे लगते हैं इसलिये उन वृक्षोंका नाम सप्तन्छव है । अमरकोशमें लिखा है--
सप्तपर्णो विशालत्वकू शारदो विषमच्छदः। धन्वन्तरी कुस निघंटुमें भी लिखा हैसप्तपर्णः सुपिपर्णः छत्रपर्णी सुपर्णकः । सप्तच्छदो गुच्छपुन्छस्तथा शाल्मलिपत्रकः ।
प्रश्नयहाँपर सप्तच्छवे वृक्षका नाम नहीं बतलाया है किंतु सप्त छव, सप्तपर्ण वा सप्तदल बतलाया है है सो कोई और वृक्ष होगा।
उत्तर--यह कहना मिथ्या है, शास्त्रोंसे विरुद्ध है । क्योंकि छद, बल, पर्ण, सब पत्तोंके नाम हैं । लिखा। भी है-'पत्रं पलाशं छदनं दलं पर्ण छवः पुमान् । पत्र, पलाश, छदम, बल, पर्ण और छद ये सब पत्तोंके नाम हैं । 1 इन सबका एक ही अर्थ है। इसके सिवाय विचारनेकी बात यह है कि वृक्षोंको शोभा सुन्दर पत्ते, सुगंधित पुष्प और फलोंसे होती है।