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खबर नहीं हुई थी। उस समय उनकी सर्वव्यापकता कहाँ चली गई थी। ऐसी-ऐसी अनेक विरुद्ध बातें हैं
जिनसे विष्णको सर्वव्यापकता सिद्ध नहीं हो सकती। इससे सिद्ध होता है कि सर्वव्यापक एक सर्वजदेव वर्षासागर । अरहत ही हैं और कोई नहीं है।
कोई-कोई कहते हैं कि अरहंत नामका कोई राजा हुआ है उसका चलाया यह जैनमत है । परंतु यह कहना सब मिथ्या ओर वृथा है । सत्य नहीं है । भगवान सर्वज्ञ वीतरागको हो अरहंत कहते हैं। उन्होंने जो कुछ प्रतिणवन किया है वही जैनधर्म है।
इस प्रकार यह अकार परमेश्वर है। समस्त विघ्नोंका नाश करनेवाला और समस्त पापोंका घात करनेवाला है। महा मंगलरूप है और सज्जनोंका रक्षक है इसीलिये यह प्रथम मंगलवाचक है।
इस अकार अक्षरको अन्यमतमें श्रीकंठ, केशव, निवृत्ति, ईश्वर, मातृका, वात आदि कितने ही नामसे पुकारते हैं और ये सब नाम मांगलिक तथा मोक्षके वाचक है । सो ही मातृका निघंटुमें लिखा हैश्रीकंठः केशवश्चापि निवृत्तिरीश्वरादिकः । अकारो मातृकाद्याश्च वात इत्यपि कीर्तितः ॥
इस प्रकार अरहंतका प्रपम अमर अकारका स्वरूप सिद्ध किया ।
अब दूसरे अक्षर 'र' का स्वरूप दिखलाते हैं । र का अर्थ राग है, बल है, रव अर्थात् शब्द है जेस्व अर्थात् जय होना है, शब्ब है और गधेको आवाज है सो हो एकाक्षरी वर्णमात्रा कोशमें लिखा है
रागे वले रखे जत्वे शब्दे च खरशब्दके। यहाँ शुभ प्रसंग है । इसलिये 'र' शब्दका अर्थ बलवान, सामर्थ्यपना, शब्दपना अथवा जय वा जीत लेना चाहिये । इस प्रकार यह रफार अक्षर भी मांगलिक और अनेक गुणोंवाला सिद्ध होता है।
इसके आगे हकार है।ह का अर्थ हर्ष और हनन है। प्रकरणके वशसे यहाँ हर्ष हो लेना चाहिये । सो हो एकाक्षरो वर्णमात्रा कोशमें लिखा है। "हर्षे च हनने हः स्यात्"।
हकारके ऊपर अनुस्वार है तो इसकी अन्यमतमें परब्रह्म संज्ञा है। और परब्रह्म श्री अरहंतको कहते है। एकाक्षरी वर्णकोशमें लिखा है। "हं परब्रह्मसंज्ञकः" इस प्रकार यह तीसरा अक्षर 'ह' परमात्मस्वरूप । और मांगलिक सिद्ध होता है। हं शब्बका अर्थ मत भी है । एकाक्षरी कोशमें लिखा है । 'हं मते' ।
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