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- वर्षासागर [२६]
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'प्रलापो नृतभाषणम्' झूठ बोलनेका नाम प्रलाप है। जो स्त्री रजोधर्मके समयमें परिश्रम करती है उसके उन्मत्त उन्माद रोगवाला वा बायला पुत्र होता है। जो स्त्री उन दिनों पृथ्वी खोबती है उसके दुष्ट बालक होता है । जो चौड़ेमें सोती है उसके उन्मत्त बालक होता है। इस प्रकार अयोग्यतासे अनेक दोष उत्पन्न हो जाते हैं | इसलिये ये अयोग्य कार्य नहीं करने चाहिये । विवेक पूर्वक रहना चाहिये। यह कथन जैन शास्त्रोंका नहीं है किन्तु लटकन मिश्रके पुत्र भाव मिश्रके बनाये हुए भावप्रकाश नामके वैद्यक शास्त्रमें लिखा है यहाँ प्रकरण समझ कर लिख दिया है । यथा-
अज्ञानाद्वा प्रमादाद्वा लौल्याद्वा दैवतश्च वा । साचेत्कुर्यान्निषिद्धानि गर्भे दोषास्तदाप्नुयात् ॥
एतस्या रोदनाद् गर्भो भवेद्विकृतलोचनः । नखच्छेदेन कुनखी कुष्ठी त्वभ्यंगतो भवेत् ॥ अनुपात्तथा स्नानाद दुःशीलो जननादहरू । स्वापिशीलो दिवास्वापाचचंचलः स्यात्प्रधावनात् ॥
अत्युच्चशब्दश्रवणाद्वधिरः खलुः जायते । तालुदंतौष्ठजिह्वासु श्यामो हसनतो भवत् ॥ प्रलापी भूरिकथनादुन्मत्तस्तु परिश्रमात् । खलोतिभूमिखननादुन्मत्तो वातसेवनात् ॥ इस प्रकार अयोग्य कमौके करनेके दोष बतलाये है सो इनका त्याग करना ही उचित है । जो कोई अनाचारी भ्रष्ट इनका दोष नहीं मानते। कितने हो लोग स्पर्श करनेपर भी स्नान नहीं करते। कितने ही लोग दूसरे, तीसरे दिन स्नान कराकर उसके हाथ के किये हुए सब तरहके भोजन खा लेते हैं । कोई-कोई लोग उन्हीं दिनोंमें कुशोल सेवन भी करते हैं परन्तु ऐसे लोग महा अधर्मी, पातकी, भ्रष्ट और
नोचातिनीच कहलाते हैं। ऐसे लोग स्पर्श करने योग्य भी नहीं है । इसका भी कारण यह है कि रजोधर्मवाली स्त्रीको पहले दिन चांडालो संज्ञा है दूसरे दिन ब्रह्मघातिनी संज्ञा है तीसरे दिन रजको संज्ञा है और चौथे दिन शुद्ध होती है । यथा
प्रथमेहनि चांडाली द्वितीये ब्रह्मघातिनी । तृतीये रजकी प्रोक्ता चतुर्थेहनि शुद्धयति ॥
इसलिये स्त्री चौथे ही विन शुद्ध होती है । जो स्त्री परपुरुषगामिनी है वह जीवनपर्यन्त अशुद्ध रहती
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