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इस यन्त्रको सिबिसे अनेक प्रकारके विघ्नमाल तथा संसारकी अनेक प्रकारको आपत्तियां दूर होती हैं तथा इच्छानुसार फल प्राप्त होते हैं। इस यन्त्रके माहात्म्यसे सर्प, सपिणी, गोनसा, वृश्चिक, काकिनी, । अफिनी, यामिनी, राकिनी, लाकिनी, शाकिनी, हाकिनी, राक्षस, भेषस व्यन्तर, देवत, तस्कर, अग्नि, शृंगी, बंष्ट्री, रेपल, पक्षी, मुद्गल, जुभक, सोयद सिंह, शूकर, चित्रक, हस्तो, भूमिप, शास्त्रव, प्रामिण, बुर्जन, व्याषि इत्यावि समस्त दुःख देनेवाले तुरन्त ही नष्ट हो जाते हैं तथा वे सब दुष्ट उपद्रव करने के लिये असमर्थ हो जाते हैं। तथा इस यंत्रके प्रभावसे दुर्जन, भूत, वेताल, पिशाच, मुद्गल, अग्नि आदि सर्व उपद्रव शान्त हो जाते हैं । तथा इस यंत्रको पास रखनेसे युद्ध में, द्वारमें, अग्निके उपद्रवमें, जलमे, दुर्ग अर्थात् फिलेमें, हायो, सिंह आरिके उपद्रवमें, श्मशानमें, घोर बनमें और अटवीमे स्मरण करने मात्रसे हो रक्षा होती है और समस्त । उपद्रव दूर हो जाते हैं । इसको पास रखनेसे राज्यसे भ्रष्ट हुए लोग राज्यपदको प्राप्त करते हैं, किसी पबसे । भ्रष्ट हुए जीव अपने पदको प्राप्त करते हैं, लक्ष्मीसे भ्रष्ट हुए लक्ष्मीको पाते हैं। भार्यार्थी भार्याको पाते हैं, पुत्रार्थों पुत्रको पाते हैं और धर्मार्थी धर्मको पाते हैं। इसके सिवाय इसके गुण और भी बहुत है सो सब इसके स्तोत्रसे जान लेना चाहिये । इस प्रकार यह ऋषिमणल यन्त्रका उद्धार है । यन्त्र पृष्ठ २११ (क) में देखो।
१६१-चर्चा एकसौ इकसठवीं प्रश्न-चितामणि चक्रका क्या स्वरूप है ?
समाधान-यह यंत्र अरहन्त सम्बन्धी है। इसको नित्य पूजा, वन्दना, स्तवन, सेवा, जप करनेसे अभीष्ट फल प्राप्त होता है । तथा जो पुरुष इसको पूजा, वन्दना आदि करते हैं वे मुक्तिरूपी लक्ष्मीके वल्लभ होते हैं और मुक्तिके चित्तको रंजायमान वा प्रसन्न करते रहते हैं। उनके वामें तीनों लोक हो जाता है ऐसा इसका फल है। आगे उसके बनानेकी विधि लिखते हैंसान्तं विन्दूर्ध्वरेफ वहिरपि विलखेदायताष्टाब्जपत्रं,
दिक् वीं श्रीं ह्रीं स्मरेन्या स्वभिवशकरणं झौं तथा व्लौं पुनर्यः।
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