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पर्चासागर । २१८ ]
anाचनानासन्मानपन्चराः
सोलहवां कारण प्रवचनवत्सलत्व है। प्रवचन शब्दका अर्थ धर्मात्मा है अथवा सिद्धांतशास्त्रोंके जानकारोंको भी प्रवचन कहते हैं, उन धर्मात्माओंके साथ गौ बछड़े के समान प्रेम करना प्रवचनवत्सलत्व कहलाता है।
इस प्रकार दर्शनविशुद्धि आदि सोलह कारण भावनाएं हैं जो पुरुष इनकी भावना करता है, इनका पालन करता है उसके तीर्थकर नामकर्मका बंध होता है । इसीलिए इनकी 'सोलहकारण भावना' ऐसी संज्ञा है । यह सोलहकारण भावना साक्षात् मोक्षका कारण है सो ही मोक्षशास्त्रमें लिखा है।
दर्शनविशुद्धिविनयसम्पन्नताशीलवतेष्वनतिचारोऽभीक्ष्णज्ञानोपयोगसंवेगौ शक्तितस्त्यागतपसी साधुसमाधिरूंगातयकरणमईदाचार्य जनता पदभक्तिरावश्यकापरिहाणिमार्गप्रभावनाप्रवचनवत्सलत्वमितितीर्थकरत्वस्य । - अध्याय ६, सूत्र २४
इसलिये भव्य जीवोंको तीर्थकर पद प्राप्त करनेके लिए जल, गन्ध आदि द्रव्योंसे इनकी पूजा करनी चाहिये, इनका जप करना चाहिए, ध्यान करना चाहिये । तथा इनको साक्षात् प्राप्त करनेके लिए एक महीने तक लगातार एकान्तर उपवास सहित (एक दिन उपवास एक दिन पारणा इस प्रकार सोलह उपवास सोलह पारणा या भोजन व्रत धारण करना चाहिये। इसकी विधि अन्य शास्त्रों में कथासहित लिखी है वहाँसे जान। लेना चाहिये।
आगे इस सोलहकारण भावनाका यन्त्र बनानेकी विधि लिखते हैं।
सबसे पहले मध्यमें गोलाकार कमलकी कणिका बनानी चाहिये। उसमें सिद्धचक्रका मल बोज 'है ऐसा लिखना चाहिये । फिर उसके नीचे ब्रह्ममाया युक्त आदि कारणका नाम लिखकर अन्य कारणोंको आदि । " शब्दसे समुच्चयरूप लिखकर चतुर्यो भक्ति और नमः शब्दके साथ लिखना चाहिये । वह मन्त्र यह है 'ॐ ह्रीं ।
वर्शनविशुद्धचादिषोडशकारणेभ्यो नमः' यह मन्त्र लिखना चाहिये। फिर उसके आगे तीन वलय बेकर सोलह दलका कमल लिखना चाहिये। उन दलोंमें प्रत्येकमें ब्रह्ममायाबीजसहित चतुर्थी विभक्ति और नमः शम्बके साथ अलग-अलग प्रत्येक कारण लिखना चाहिये। तथा पूर्व दिशासे आरम्भ कर बाई ओरको लिखना चाहिये। पहले दलमें 'ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्धये नम' दूसरेमें 'ॐ ह्रीं विनयसंपन्नतायै नमः' तीसरेमें 'ॐ ह्रीं शीतवतेष्वनतिचाराय नमः' चौथेमें 'ॐ ह्रीं अभीषणज्ञानोपयोगाय नमः' पांचवेमें 'ह्रीं संवेगाय नमः' छठेमें 'ॐ ह्रीं ।