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सागर
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समाधान — पूजा करते समय मन्त्र पढ़कर द्रव्य चढ़ाना चाहिये यदि वह द्रव्य बोधमें गिर जाय तो उसे छोड़ देना चाहिये । फिर जो ध्य गिरा है उसी द्रव्यको लेकर और उसी मन्त्रको पढ़कर एफसी माठ आहूति देनी चाहिये अर्थात् अक्षत गिरा हो तो अक्षतका मन्त्र पढ़कर अक्षतको एकलौ आठ आहूति देनी चाहिये । यदि पुरुष गिरा हो तो इसी प्रकार पुष्पको एकसौ आठ आहूति देनी चाहिये। इस प्रकार जलादिक आठों द्रव्योंमेंसे जो ग्रव्य गिरा हो उसीका मन्त्र पढ़कर एकसौ आठ आहूति देनी चाहिये। फिर माफीकी पूजा पूर्ण करनी चाहिये । यही इसका प्रायश्चित्त है। सो ही संहिताके अठारहवें अधिकारमें लिखा है-प्रपांत वलिपिंडस्य जिन मन्त्रेण मन्त्रवित् । अष्टोत्तरशतं कुर्यादाहुतीस्तद्विधिक्रमात् ॥ १७७ - चर्चा एकसौ सतहत्तरवीं
प्रश्न -- यदि कोई हीन जातिका अस्पृश्य मनुष्य जिनबिम्बका स्पर्श कर लेवें तो उस मूर्तिका क्या करना चाहिये ?
समाधान -- जो जिनबबके गिर जानेका प्रायश्चित है वहो प्रायश्चित्त अस्पृश्य मनुष्यके द्वारा जिनfare स्पर्श कर लेनेपर करना चाहिये । अर्थात् उस मूर्तिका एकसौ आठ कलशोंसे अभिषेक कर, पूजाकर मूलमन्त्र एकसौ आठ आहूती देनी चाहिये फिर उसको वहीं विराजमान कर देना चाहिये। सो ही पूजासारमें लिखा है-
अस्पृश्यजनसंस्पर्शेप्येवंमेवं जिनेशिनाम् ।
१७८ - चर्चा एकसौ अठहत्तरवीं
प्रश्न- यदि स्पृश्य बिना स्नान किये जिनप्रतिमाका स्पर्श कर लेवे तो क्या करना चाहिये ?
समाधान -- यदि स्पृश्य मनुष्य बिना स्नान किये भगवानको मूर्तिका स्पर्श कर लेवे तो भगवानका पच्चीस कलशोंसे मंत्रपूर्वक अभिषेक करना चाहिये। सो हो जिनसंहिता में लिखा है-स्पृष्टेऽनियजनैः पंचविंशत्या स्नापयेद घटैः ।
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