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कदाचित् कोई यह कहे कि ऐसा करनेसे तो सब जगह पूजा करनेका लोप हो जायगा । क्योंकि ऊपर जो पूजा करनेवालेके लक्षण लिखे हैं ऐसे लक्षण वाले तो पुरुष बहुत थोड़े हैं। तथा जिनमन्दिर बहत हैं । ऐसी
हालसमें क्या करना चाहिये। तो इसका उत्तर यह है कि पूजफके दो भेद हैं एक तो जिनप्रतिष्ठाविक महा। Patel | कार्यों में पूजा करनेवाला सो तो ऊपर लिखे लक्षणोंसे सुशोभित ही होना चाहिये। अन्य नहीं होना चाहिये।
तथा मिस पूजा विधाल करने पर हिलोलोंसे रहित होना चाहिये। यदि ऐसा न हो तो महादोषोंसे रहित समयानुसार जो यथायोग्य हो उसको हो पूजा करनी चाहिये। जिसके महादोष प्रगट दिखाई देते हों जो सर्वथा अयोग्य हो उसको नित्यपूजा भी नहीं करनी चाहिये । सो ही पूजासारमें लिखा है-- पूजकः पूजकाचार्यः इति द्वेधास्तु पूजकः। आदौ नित्यार्चकोऽन्योस्तु प्रतिष्ठादिविधायकः ॥ इससे सिद्ध है कि पूजा करनेवाला योग्य ही देखना चाहिये।।
१७५-चर्चा एकसौ पिचहत्तरवीं प्रश्न-पूजा करते समय किसोके हाथसे प्रोजिनप्रतिमा पृथ्वीपर गिर पड़े तो उसका प्रायश्चित क्या है ?
समाधान-जो पूजा करते समय जिनमूर्ति पृथ्वीपर गिर पड़े तो उस पूजा करनेवालेको उस मूर्तिका शुद्ध जल तथा गंधोदक पर्यन्त भरे हुये एक सौ आठ कलशोंसे मन्त्रपूर्वक भगवानका अभिषेक करना चाहिये । फिर पूजा कर एकसौ आठ मूलमन्त्रोंसे आहुति देकर फिर वहीं विराजमान कर देना चाहिये। ऐसा इसका प्रायश्चित्त है । सो ही जिनसंहितामें आठवें अधिकारमें लिखा हैपतिते जिनबिम्बेऽष्टशतेन स्नापयेद् घटः। अष्टोत्तरशतं कुर्यान्मूलमन्त्रण चाहुतीः ॥२४॥
इस प्रकार मूर्तिक गिर पड़नेपर बहुतसे लोग बिना समझे केवल अपने मनसे ही किसी सचित्त वस्तुके खानेका त्याग कर देते हैं या उपवास, एकाशन आदि कर लेते हैं वा करा देते हैं सो शास्त्रको विधिसे विपरीत है।
१७६-चर्चा एकसौ छिहत्तरवीं प्रश्न-पूजा करते समय मन्त्रपूर्वक नैवेद्य आदि चढ़ानेमें किसीके हाथसे वह नैवेद्याविक पृथ्वी आवि अन्य क्षेत्रमें गिर जाय, पूजाके स्थाममें न चढ़ाया जा सके बीच ही में गिर जाय तो क्या करना चाहिये।
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