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पर्चासागर [ ३२१ ]
॥ दूषितेऽस्थ्यादिभिर्देवधाम्न्यस्पृश्यजनेरपि । संशोध्य सकलं धाम हुस्खा धूम्रध्वजांकुरैः ।।
सिक्त्वा च सुधयों देवं तैरेव स्नापयेद् घटेः॥ २८ ॥
१८२-चर्चा एकसौ वियासीवीं । प्रश्न-भगवानको पूजा सोनों समय को जाती है। यदि किसी एक समय प्रतिमाजी अपूज्य रहें, दो। समय वा तीन समय अपूज्य रहें । इसी प्रकार एक दिन, वो बिन, तोन दिन, चार, पांच, छह, सात दिन तथा पन्द्रह दिन, एक महीने तक जिनप्रतिमाजी अपूज्य रहें । इतने दिन तक उनको पूजा न हो तो फिर क्या करना है चाहिये।
समाधान---प्रतिमाजीके अपूज्य रहनेका प्रायश्चित्त अलग-अलग है उसीको अनुक्रमसे लिखते हैं। यदि एक समय पूजा न बन सके तो दूसरे समय दूनी पूजा कर लेनी चाहिये तथा एकसौ आठ बार णमोकार मन्त्रका जप करना चाहिये। यदि वो समय तक भगवानको पूजा न हुई हो तो सोलह घटोंसे भगवानका अभिषेक करना
चाहिये। यदि एक दिन भगवानकी पूजा न हुई हो तो उन प्रतिमाओंका पच्चीस कलशोंसे जलाभिषेक करना । चाहिये । यदि पांच दिन तक भगवानको पूजा न हुई हो तो इक्यावन कलशोंसे उन प्रतिमाजीका अभिषेक करना।
चाहिये । यदि दश दिन रात तक भगवानको पूजा न हुई हो तो उस मन्दिरमें विराजमान मूर्तिका इक्यासी कलशोंसे अभिषेक करना चाहिये। यदि पन्द्रह दिन तक भगवान अपूज्य रहे हों तो एकसौ आठ कलशोंसे अभिषेक करना चाहिये। यदि एक महीने तक भगवानका पूजन न हुआ हो तो दोसौ आठ कलशोंसे उनका अभिषेक करना चाहिये। यदि दो महीने तक पूजा न हुई हो तो उन अरहतको प्रतिबिंबका तीनसौ आठ कलशोंसे स्नपन करना चाहिये । पवि सोन महोने तक पूजा न हुई हो तो चार सौ आठ घटोंसे अभिषेक करना चाहिये। पवि चार महीने तक पूजा न हुई हो तो पांच सौ आठ कलशोंसे उनका अभिषेक करना चाहिये । यदि पाँच । महीने तक पूजा न हुई हो तो फिर एक हजार आठ कलशोंसे महाभिषेक करना चाहिये। यवि छह महीने तक। प्रतिमाजो अपूज्य रहें तो एक हजार आठ कलशोंसे महाभिषेक कर संप्रोक्षण करना चाहिये । संप्रोक्षण करनेकी विधि जिनसंहितासे जान लेनी चाहिये । १. उस मन्दिर पर सफेदी भी करानी चाहिये।