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चले आ रहे हैं तथा चौथा ब्राह्मण वर्ण महाराज भरतने स्थापन किया है। जो क्षत्रियवंशमें उत्पन्न हुए । । सम्यग्वृष्टि, उपासकाचारके साधक, दानके पात्र, ब्रह्मज्ञानके प्रकाशक, बारह तप और पांचों अणुव्रताविकोंको पालन करनेवाले थे उनको ब्राह्मण वर्ण स्थापन किया था । सो ही लिखा है
ब्रह्मज्ञानविकाशकाः तपोवतयुतास्ते ब्राह्मणाः । ऐसे ब्राह्मण सम्यग्दर्शन आदि अनेक गुणोंको पालन करते हैं और रत्नत्रयके चिह्न स्वरूप यज्ञोपवीतको धारण करते हैं । ऐसे धर्मात्मा ब्राह्मणोंको दान देना लिखा है। यदि ब्राह्मण मिथ्यावृष्टि, पाखण्डो, विषयभोगके लम्पटी, दुराचारी, हिंसादिक महापापके धारी, महारम्भी, जैनधर्मके निन्दक, द्रोही, अभिमानी और दूसरोंको ठगनेवाले ऐसे अपात्र हों तो गयो, वादाशिक यात्री नहीं देता नाहिये। ऐसे ब्राह्मणोंको दानका फल जैनशास्त्रों में खोटा लिखा है । ऐसे ब्राह्मणोंको कभी दान नहीं देना चाहिये।
प्रश्न-यदि वर्तमान समय में सम्यग्दृष्टि ब्राह्मण न मिले तो क्या करना चाहिये तो इसका उत्तर यह है कि जैनशास्त्रोंमें और प्रकारसे भी गौदान करना लिखा है। भगवान अरहन्तदेवके अभिषेक करनेके लिए श्री जिनमन्दिरमें गौदान देना चाहिये। इसलिये यदि सम्यादृष्टि ब्राह्मण न मिले तो जिनमन्दिरमें गोदान करना । चाहिये।
प्रश्न--जिनमन्दिरमें गोदान करना कहां लिखा है तथा इसकी प्रवृत्ति भी आजकल कहाँ है । तो इसका उत्तर यह है कि यह प्रकरण त्रिवर्णाचारमें बश दानका वर्णन करते समय लिखा है वह इस प्रकार हैपहले तो उत्तरपुराणमें लिखा है। शास्त्रदान, अभयदान और अन्नदान ये तीनों दान बुद्धिमानोंको देने चाहिये। । ये तीनों दान अनेक प्रकारके फल देने वाले हैं। सो ही उत्तरपुराणमें लिखा है। शास्त्राभयान्नदानानि प्रोक्तानि जिनशासने । पूर्वपूर्व बहुपात्रफलानीमानि धीमता ॥
और देखो वश तीर्थकर श्रोशीतलनायके अन्तरालमें एक भूतिशर्मा नामके ब्राह्मणके एक मुण्डशालायन नामका पुत्र हुआ था। उसने बहुत विद्या पढ़ो यो परन्तु मिथ्यात्वकर्मके तीव्र उदयसे यह जिनधर्मका तोत्र द्रोही था। उसने जिनधर्मके विरुद्ध बससे शास्त्र बनाये और लोभके वशीभूत होकर अपनी आजीविकाके लिये "ब्राह्मणोंको कन्या आधि दश प्रकारके दान देना चाहिये" ऐसा वर्णन किया और उसमें बहुत पुण्य बत