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चर्चासागर
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एक कायोत्सर्ग है यदि कोई मुनि रातमें किसी काठ, पत्थरको उठावे वा हिलावे वा दूसरी जगह रक्खे अथवा रात में इधर-उधर फिरे तो उसका प्रायश्चित्त एक उपवास है। सो ही लिखा है-
उट्ठादि वियडि दालण ठाणादो वा खिवेज अण | काउस्सगं पक्खड़ असंखविषपं उवासो ॥
यह आदाननिक्षेपण समितिका प्रायश्चित है।
यदि कोई मुनि हरित काय पृथ्वीपर रात्रिमें एक बार मलमूत्र निक्षेपण करें तो उसका प्रायश्चित्त एक कायोत्सर्ग है । यदि वे बार-बार निक्षेपण करें तो उसका प्रायश्चित्त एक उपवास है। सो ही लिखा है-हरिभूद्द चेज उवरिं उच्चारादि करेदि पदेहिं । दो वे काउस्सग्गुववासो जाण बहुवारं ॥
इस प्रकार यह प्रतिष्ठापन समितिका प्रायश्चित्त बतलाया ।
स्पर्शन, रसना, प्राण, चक्षु और श्रोत्र ये पाँच इन्द्रियाँ हैं। यदि कोई मुनि अप्रमत्त होकर स्पर्शन इन्द्रियका विषय पोषण करे उसको वशमें न रक्खे तो एक कायोत्सर्ग प्रायश्चित्त है। रसना इन्द्रियको वशमें न करनेका प्रायश्चित्त दो कायोत्सर्ग है और इसी प्रकार प्राण इन्द्रियको वशमें न करनेका प्रायश्चित तीन कायोत्सर्ग । चक्षु इन्द्रियको वशमे न करनेका प्रायश्चित्त चार फायोत्सर्ग और कर्ण इन्द्रियको वशमें न करनेका प्रायश्चित्त पांच कायोत्सर्ग है। यदि कोई मुनि प्रभावी होकर इन इन्द्रियोंको वशमें न रक्खे तो उनका प्रायश्चित इस प्रकार है-प्रमत्त होकर स्पर्शन इन्द्रियोंको वशमें न रक्खे तो एक उपवास, रसना इन्द्रियको वशमें न रक्खे तो वो उपवास, प्राण इंद्रियको वशमें न रक्खे तो लोन उपवास, चक्षु इंद्रियको वशमें न रक्खे तो चार उपवास और श्रोत्र इंद्रियको वशमें न रक्खे तो पाँच उपवास प्रायश्चित्त है। सो हो लिखा है-
फरस रस घाण चक्खु सोददि चोर पमत्त इदरस्त । पयुत्तर वढिया कमसो ॥
काउसम्ववासो
इस प्रकार यह पंचेन्द्रिय निरोधका प्रायश्चित्त बतलाया ।
यदि कोई मुनि वंदना आदि छहों आवश्यकोंके करनेमें तीनों कालोंके नियमोंको भूल जाय अथवा
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