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१६६-चर्चा एकसौ छयासठवीं प्रश्न-पहलेकी पूजा और यन्त्रों में ओंकार और ह्रींकार सब अगह मुख्य रीतिसे लिखा है सो इन। पांसागर दोनोंका स्वरूप क्या है। तथा इन में परमेष्ठी हैं और कौनसे देव हैं । जिससे कि इनका उच्चारण सबसे पहले २२४ ] किया जाता है तथा अन्य पाठ पोछे पढ़े जाते हैं। यह यन्त्र सबसे मुख्य है । इसका क्या कारण है ?
समाधान-सबसे मुख्य मन्त्र ओंकार है। व्याकरणके अनुसार ओं शब्दका अर्थ अंगोकार, स्वीकार । अथवा ग्रहण करना है। सो लिखा है “ओमित्यंगोकरणे" अर्थात् ओं शब्दका अर्थ अंगीकार वा स्वीकार । करना है । इसीलिये समस्त कार्योंके प्रारम्भमें इस धातुका उच्चारण सबसे पहले किया जाता है । भावार्थपूजा, ध्यान, जप आदि समस्त कार्योंके प्रारम्भमें ओं शब्द रखना चाहिये ऐसा आचार्योका मत है । यह ओंकार।
समस्त अक्षरों में मुख्य है तथा अक्षरोंमें मणियोंके समान सर्वश्रेष्ठ है। यह दूसरों के द्वारा हराया नहीं जा । सकता इसीलिए इसकी अनाहत संशा है । तथा यह नकारा है इसलिए इसकी प्रणव संज्ञा है इसी कारण
इसको सबसे पहले रखते हैं। इसको भक्त बोज भी कहते हैं अतएव कार्यके प्रारम्भमें अपने इष्ट देवको भक्ति| के लिए तथा अपने कार्यको सिद्धिके लिये इसको सबसे पहले लिखते हैं। इसो ओं को ब्रह्म संज्ञा है । ब्रह्म
आत्माको कहते हैं, आत्माके समान यह मुख्य है इसीलिये इसको प्रथम उच्चारण करते हैं। यह ओंकार । समस्त कामनाओंसे अर्थात् धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चारों पुरुषार्थोंको कामना रूपी जालसे पार कर देता। है इसीलिये इसको तारक संज्ञा है। भावार्थ-इस मन्त्रसे सब कार्योको सिद्धि होती है और संसारसे पार
हो जाता है । इसी ओं को वेद कहते हैं। यह ओं शब्द समस्त अक्षरोंका द्वादशांगका मूल वा प्रथम अक्षर है। 1 और सबको जानता है, इसीलिये इसको वेव कहते हैं। यह वेव शब्द ज्ञानार्थक विद् धातुसे बना है। यह सबको जानता है इसीलिये इसको सबसे पहले उच्चारण करते हैं ।
अन्य धर्मवाले भी ओं शवको मानते हैं अपने इष्ट देवकी स्थापना कर इसकी पूजा करते हैं। इस ओं शब्दमें अन्य धर्मवाले किस-किस इष्ट देवकी कल्पना करते हैं वही आगे दिखलाते हैं । विष्णु, ब्रह्मा, महेश [ २२४ । इन तीनों देवताओंके स्वरूपसे ओंकार बनता है ऐसा वे लोग कहते हैं । इसको वे इस प्रकार सिद्ध करते हैं। | अ आ उम इन चार अक्षरोंसे ओंकार बनता है। इनमेसे अकार अक्षर तो विष्णुमयी है । आकार अक्षर ब्रह्म