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सागर
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अनेक अनर्थ उत्पन्न करनेवाले वचन कहते हैं, क्रोध करते हैं, दुर्बखन बोलते हैं, परन्तु अपना हृट नहीं छोड़ते ।
बार-बार उन्हीं बघनको कहते वा करते जाते हैं। नहीं मानते वे इस वास्तविक मोक्षमार्गमं मू भूर्खस्य पंच चिह्नानि क्रोधी दुर्वचनी तथा । हठी च दृढवादी च परोक्त नैव मन्यते ॥
ऐसे जो लोग पूर्वाचार्योंके कहे हुए जिनागमके वचनों को जाते हैं।
अर्थात् क्रोध करना, दुर्वेचन कहना, हठ करना, बारम्बार उसी बातको कहते जाना और दूसरोंकी बात नहीं मानना ये पाँच मूर्खताके चिह्न है। ऐसे लोगोंका श्रद्धान कभी यथार्थं नहीं हो सकता केवल आजीfare लिए कपटरूप झूठा श्रद्धान होता है मोक्षके लिए यथार्थ श्रद्धान नहीं होता ।
१६६ चर्चा एकसौ उनहत्तरवीं
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प्रश्न --- पहले पूजामें वाभ, दूब, गोमय भस्मपिण्ड, सरसों आदि पदार्थ लिखे हैं सो ये पदार्थ तो अपवित्र हैं हिंसा आदि अनेक दोषोंसे भरे हैं इसलिये इनको पूजामें क्यों लेना चाहिये । तथा अष्ट द्रव्योंमें कौन-कौनसे द्रव्य लेने चाहिये ।
समाधान – ये सब अपवित्र पदार्थ नहीं है किन्तु मांगलिक द्रव्य है इनको पहले भी लिख चुके हैं। जिस प्रकार लोह, लाख, हल्बी, मैनफल आदि मांगलिक पदार्थ विवाहमें वर कन्याके हाथमें बांधते है उसी प्रकार अभिषेक, पूजा, प्रतिष्ठा आदि कार्योंमें इन मंगल द्रव्योंको ग्रहण किया है। सो हो वसुनन्दीश्रावकाचारकी संस्कृत टीका लिखा है "यथा विवाहसमये चरकन्याः हस्ते लोहलाक्षासर्षपहरिद्रा दोन्यते तथाभिषेकप्रतिष्ठादौ दर्भदुर्वागोमय सर्षपादीनि मंगलद्रव्याणि गृह्यन्ते । अन्यत्किमपि नास्ति । महापुरुषैयन्मान्यं तदेव मन्यते" अर्थात् " जिस प्रकार विवाहमें वरकन्याके हाथमें लोह, सरसों, हल्दी आदि मंगल द्रव्य देते हैं उसी प्रकार अभिषेक, प्रतिष्ठा आदि कार्योंमें दाभ, दूब, गोमय, सरसों आदि मंगलद्रव्य ग्रहण किये जाते हैं। इनके ग्रहण करनेका और कोई प्रयोजन नहीं है। पहले के महापुरुष जो करते चले आये हैं वही किया जाता वही माना जाता है।
तथा
बाभके दश भेव हैं सो समयपर जैसा मिले वैसा ही ले लेना चाहिये। हमें बाभ या दुबके हो लिये कोई हट नहीं है । दाभ न मिले तो अनुक्रमसे जो मिले सो ले लेना चाहिये । इस प्रकारके बाभ ये हैं
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