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चर्चासागर [ २७९ ]
प्रश्न --- कदाचित् यह कहो कि- "जो हम मानते हैं वही ठीक है। इस पश्चमकालमें जैनशास्त्रों के ata-ataमें अनेक श्लोक मिलाकर अनेक प्रकारके सदोष वचन लिख दिये है। जिस प्रकार किसी साहूकारके बहुत समय से पीढ़ी दर पीढ़ीसे सच्चे बहुमूल्य रत्नोंका हार चला आ रहा था। किसी एक समय वह बहुमूल्य रत्नोंका हार उजलवानेके लिए सुनारको दिया। उस सुनारने उस हारमेंसे बीच-बीच मेंसे कितने ही बहुमूल्य ter free लिए और उनके बदले झूठे काँचक टुकड़ोंके नग जोड़कर उजालकर यह हार सौंप दिया। वह साहूकार रत्नोंकी परीक्षा करना नहीं जानता था और उसने किसो जानकारको दिखाया भी नहीं था। सुनारसे लेकर ज्योंका त्यों भीतर रख दिया था। कितने ही दिन बाद वह हार किसी जौहरीके हाथ दिया गया तब उनकी परीक्षा हुई। तब मालूम हुआ कि इसमेंसे सच्चे रहन निकाल लिए गये हैं और उनके स्थानपर झूठे stead टुकड़ोंके नग जोड़ दिये गये हैं। इसी प्रकार शास्त्रों में भी इवेताम्बरी, रक्ताम्बरी आदि विषय कथायी लम्पटी और परिग्रह धारण करनेवाले लोगोंने बीच बोचमें झूठे कथन मिला दिये हैं कितना ही नवीन नवीन कथन मिला दिया है। इसलिए उनमेंसे सच्चे कथनको ता हम मान लेते हैं और मिलाये हुए झूठे कपनको नहीं मानते तो इसका उत्तर वा समाधान यह है कि जैसे आप हो वैसा हो सबको जानते हो । सोचो तो सही जो बीच-बीच में कितने हो रत्न झूठे रख दिये गये तब उसकी कीमत सच्चे रत्नोंकी रह गई या झूठोंकी रह गई ।
किसी एक ठगने सच्चे रश्नोंका हार देखा फिर उसमें कितने ही झूठे नग मिले हुए देखे । तब उसने एक नया हार बनवाया। जिसमें आदि अन्त और मध्य में तो सच्चे रत्न लगाये और बाकी सब रत्न झूठे लगाये और वे झूठे रत्न ऐसे लगाये जिनसे अच्छे-अच्छे जौहरी भी ठगे जा सकें। ऐसा हार बनाकर वह ठग उस हारको बेचने आया और अनुक्रमसे वह उसी जौहरीके पास पहुंचा जिसके पास सच्चे रत्नोंका हार था किन्तु जिसके बीच-बीचमें झूठे रत्न मिले हुए थे उस ठगने आकर उस हार की कीमत सब सखे रत्नोंकी माँगी। तब उस जौहरीने अपने उस पुराने हारसे मिलान किया तो झूठे लगे हुए नग छिप न सके । परन्तु उस ठगने भी जौहरीके हार के बीच बोचमें झूठे रत्न दिखलाये और उन झूठे रत्नोंकी परीक्षाकर उस सब हारको झूठे रत्नोंका ठहरा दिया तथा अपने हारके जो आदि अन्तमें और मध्य में सच्चे रत्न थे उनको भी परीक्षा की और
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