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है शुभ कार्योसे उसी समय मष्ट हो जाता है । तथा उसके साथ पहलेके किये हुये समस्त पापोंके समूह नष्ट हो
जाते हैं। जिस प्रकार थोड़ा-सा घी अग्निकी तीक्ष्ण ज्वालामें पड़कर उसी समय भस्म हो जाता है उसी प्रकार वह पाप उसी समय भस्म हो जाता है। तथा महत पुण्य प्रगट होता है। पवि इसमें संदेह करोगे तो फिर पूजाविक कोई भी कार्य नहीं बन सकेगा क्योंकि फिर तो समस्त आरम्भोंको छोड़ कर केवल ढूंढिया साधुओं के समान बनना पड़ेगा। भावार्थ--निग्नन्थ मुनि सो फिर भी भगवानको पूजा, वंदना आवि करते कराते है । परन्तु दूढिया साघुओंको भगवानको पूजा, वंदना करनी भी अच्छी नहीं लगती। इस प्रकार आप लोगोंका। हाल हो जायगा।
इसके सिवाय यह भी विचार करो कि जैसे राजाके यहाँ बहुतसे सेवक होते हैं उनमेंसे कुछ तो निकटवर्ती रहते हैं और कुछ दूर रहते हैं । जो सेवक राजाके निकट रहते हैं वे राजाके हाथ, पैर दाबते हैं राजाको आज्ञानुसार सब सेवा करते हैं और पास रहकर राजाको भक्ति करते हैं तथा जो दूर रहते हैं वे दूरसे।
केवल भक्ति करते हैं परन्तु इन दोनों में लाभ किसको अधिक होता हैं ? अधिक भक्तिवाला कोन कहलाता है ? • अधिक सुख, अधिक बड़प्पन और राजाका अधिक प्रेम किसको मिलता है ? अपराधोंका निवारण किसके अधिक होता है ? राजाको सुदृष्टि किसपर अधिक रहती है तो इसके उत्तरमें कहना ही पड़ेगा कि निकट रहनेवाले ॥ सेवकके लिये हो ये सब लाभ अधिक मिलते हैं । इसी प्रकार जो भक्तजन प्रतिमाजीकी अभिषेक, पूजन आदि । कार्यों बार-बार उनके चरणोंका स्पर्श करते हैं तथा अत्यन्त अनुराग, विनय और भक्ति भावोंसे चरणस्पर्शनादि कार्य करते हैं उनके पहले किये हुए सब पाप नष्ट होकर स्वर्ग मोक्षका महा लाभ प्राप्त होता है।
यदि किसीके द्वारा योग्य वा अयोग्य अपराध भी बन जाता है तो जिस प्रकार राजा अपने निकटवर्ती । भक्त जानकर क्षमा कर देता है और उनकी भक्ति, स्तुतिसे संतुष्ट हो जाता है उसी प्रकार भगवानके चरणस्पर्श करनेसे, स्नान, विलेपन, पुष्पमाला वा प्रकोणक पुष्प उनको आशिका तथा नमस्कार, भक्ति, प्रार्थना आदि उत्तम कार्योंके द्वारा गृहस्थ सम्बन्धी संचित महा पाप नष्ट हो जाते हैं तथा उस पूजा, अभिषेक आदिसे है होनेवाला आरम्भजनित दोष भी सब दूर हो जाता है। और वह भक्त अपनी इच्छानुसार फल पाता है।
कवाचित् यह कहो कि हम भी प्रक्षालन करते समय चरण स्पर्श करते हैं, नमस्कार भक्ति करते हैं,
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