________________
ओंकारं बिन्दुसंयुक्तं नित्यं ध्यायति योगिनः ।
कामदं मोक्षदं चैव ओंकाराय नमो नमः॥ पर्चासागर अर्थात् “यह ओंकार बिन्दु सहित है योगी लोग सदा इसका ध्यान करते हैं, यह इच्छानुसार फल देने1 २२८ ] | वाला तथा मोक्ष देने वाला है ऐसे ओंकारको मैं बार-बार नमस्कार करता हूँ। इसीलिये इस ओंकारको सबसे
पहले उच्चारण करते हैं।
अन्य मतवाले ओंकारका रूप बावन अमरोंसे भी बनाते हैं। यया-- अकारादि अकारान्तं स्वरा षोडशसंज्ञका। ककारादिमकारान्ताः स्पर्शाश्च पंचविंशतिः ।। यकारादिक्षकारान्तं दशानुस्वार एव च । ओंकारं मातृकायुक्तं तद् द्विपंचाशदक्षरम् ।। वेदशास्त्रपुराणानि मंत्रयंत्राणि यद्विदुः । तत्सर्व मातृकामध्ये मातृकायाः परं न हि ॥ मातृका च परो मंत्रो मूलमंत्रश्च मातृका । तस्माच्च योगिनो नित्यं ओंकारमात्रजापिनः ॥
इस प्रकार इसका स्वरूप है।
इसके सिवाय मन्त्रशास्त्रके मतसे अन्य प्रकारसे भी यह ओं शब्द बावन अक्षरोंकी बनी हुई मातृकासे में बनता है। उसका क्रम इस प्रकार है। ककारसे लेकर अपर्यन्त सब अक्षर तथा अकासादक सोलह मात्राएं ये सब मिलकर बावन वर्ण मातका कहलाते हैं। सो सब एक ओंकारको ही कलायें हैं। भावार्थ--सब वर्ण । एक ओंकारसे ही उत्पन्न हुए हैं । ऐसा अन्य मतमें लिखा है। इसका भी विशेष स्वरूप इस प्रकार है।
क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ एता कचवर्गकलाः अकारजाः। ट ठ ड ढ ण त थ । दधन एता अष्ट टतवर्ग कलाः उकारजाः। प फ ब भ म य र ल व श एताः पयवर्ग
अकारादिक १६ स्वर, चकारसे लेकर मकार तक २५ स्पर्श, वकारसे लेकर अकार तक ( य र ल व श ष स ह ळ क्ष) ये दश तथा एक अनुस्वार ऐसे बावन अक्षरमय ओंकार हैं ये बावन अक्षर मातृका कहलाते हैं इनसे हो सब शास्त्र उत्पन्न होते हैं इसलिये इनको मातका कहते हैं इन्हीं अक्षरोसे ओंकार बना है। वेद, पुराण, यन्त्र, मन्त्र आदि सप मातका में हो गर्भित है मातृकासे बाहर कुछ नहीं है। मातृका ही परम मन्त्र है मातृका ही मूलमन्त्र है इसलिये योनी लोग ओंकार मात्रका ही जाप करते हैं हिन्दीके सिवाय मराठो आदि भाषाओं में ये दो अक्षर और अधिक माने हैं।
Sisatimechanisaमामाचा