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वर्चासागर
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श्रीमहावीर स्वामीकी पूजामें लिखा है-
मलयचन्दनकुकुमचन्द्रजैः सुभवतापहरैः परिलेपनैः । परमपावनमुक्तिदायकं परियजे जिनवीरपदाब्जकम् ॥
अर्थात् चन्दन, कपूर, कुंकुम आविसे भगवान वीरनाथके धरण-कमलोंका विलेपनकर परम पवित्र और मुक्ति देनेवाले वीरनाथकी में पूजा करता हूँ ।
इसी प्रकार शांतिचक्र, ऋषिमण्डल, पञ्चकल्याण, कर्मदहन, षोडशकारण, दशलक्षण, रत्नत्रय, सार्द्धयद्वीप, इन्द्रध्वज, पचमेद, नन्दीश्वर पूजा आदि अनेक पूजा-पाठोंमें लिखा है परन्तु ग्रन्थका विस्तार होनेके डरसे इन सबके इलोक नहीं लिखे हैं ।
प्रश्न- यहाँपर कदाचित् कोई यह कहे कि हमारे भाव लेपन करनेके नहीं हैं इसलिये हम बिना लेपन किये ही पूजा करते हैं इसमें क्या दोष है। तुम लेपन करो, हम नहीं करते ?
समाधान -- जिनके चरण-कमल केशर, चन्वन आबिके रससे लेपन नहीं किये गये हैं ऐसी मूर्तिका जो दर्शन करते हैं वे अज्ञानी है। ऐसे लोगोका ज्ञानहीन कहते हैं। ऐसा वसुनन्दि सिद्धान्तचक्रवर्तीकृत जिनसंहिता नामके शास्त्र में लिखा है । यथा
अनचितपदद्वन्दं कुकुमादिविलेपनैः । विम्बं पश्यति जैनेन्द्र ज्ञानहीनः स उच्यते ॥
अर्थात् कुंकुमादि विलेपनके द्वारा जिनके दोनों चरण प्रतिमा जो दर्शन करता है वह ज्ञानहीन कहलाता है। इससे चर्चे बिना नहीं रखने चाहिये, चंदनका विलेपन जरूर करना चाहिये ।
जिनके चरण-कमल चंवनाबिक से चर्चित हो रहे हैं ऐसी प्रतिमाके जो दर्शन नहीं करते वे कभी धर्मात्मा नहीं हो सकते । सो ही वसुनन्दिकृत जिनसंहितामें लिखा है-पश्येन्नो जिनबिम्बस्य वर्चितं कुंकुमादिभिः । पादपद्मद्वयं यो हि स भवेन्नैव धार्मिकः ॥ अर्थात् जो चंदनाविकसे चर्चित हुए भगवान के चरण-कमलोंके दर्शन नहीं करता वह कभी धर्मात्मा नहीं हो सकता ।
चर्चित नहीं किये गये हैं ऐसी जिनेन्द्र देवकी सिद्ध होता है कि भगवानके चरण चन्दनसे
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