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रावणने श्रीअनन्तवीर्य केवली भगवानके समीप बलात्कारपूर्वक परस्त्रीसेवनका त्याग वृढ़तापूर्वक लिया था ।
परस्त्रोसेवनमें महापाप है । अन्य मतवाले भी इसमें महापाप मानते हैं । शैवमतमें लिखा हैचर्चासागर
परयोनिगतो बिन्दुः कोटिपूजा विनश्यति ।। । २७६ ]
अर्थात् "जो मनुष्य अपनी विवाहिता स्त्रीके सिवाय अन्य स्त्रीको योनिमें अपने वीर्यकी एक छद भी डालता है अर्थात् जो परस्त्रोके साथ संभोग करता है उसके पहले की हुई एक करोड़ प्रमाण महादेवको पूजा है
( अथवा विष्णु आदिको पूजा) सब नष्ट हो जातो है ऐसा अन्य मतियोंके यहाँ भी लिखा है तथा श्रीकेवली । भगवानने इससे भी अधिक महापाप बतलाया है । तथा लोकव्यवहारमे भी उसे अत्यन्त निन्दनीय बतलाया है। इन सब बातोंको जानता हुआ भी वह विधेको जिनभक्त रावण श्रीरामचन्द्रको रानी सती सीताको हर ले । गया । तथा अपनी पट्टदेवी श्रीमंदोदरीके द्वारा, अपने भाई विभीषणके द्वारा, अन्य कुटुम्बियोंके द्वारा, मंत्रियों द्वारा बड़े-बड़े देशोंके अन्य राजाओंके द्वारा, तथा हनुमान आदि महापुरुषों के द्वारा अनेक बार समझानेपर भी।
उसने किसीकी न मानी । सीताके हरनेके कार्यको बुरा समझता हुआ भी वह श्रीरामचन्द्रसे युद्ध करनेके लिये । सामने आया परन्तु अंतमें यह हारा और मरकर नरकमें पहुंचा। वहाँपर अनेक प्रकारके परम वुःख भोग रहा। । है और सागरोंतक भोगेगा। इसलिये कहना चाहिये खोटा हट करना जीवोंको सदा दुःख देनेवाला होता है।
और सुनो। एक ओरफदंब नामका ब्राह्मण था वह बहुत ही विद्वान् था तथा राजगुरु था। उसके पास राजकुमार बसु, नारद नामका एक विदेशी ब्राह्मण और एक पर्वत नामका उनका ही पुत्र पढ़ा करते थे। कितने ही दिनके बाद राजा मुनि हो गया तथा क्षीरकदंब भी मुनि हो गया । तब राजकुमार वसु तो अपने
पिताके सिंहासन पर बैठकर राजा बन गया तथा क्षीरकदंबका पुत्र पर्वत उपाध्याय व राजपुरोहित बन गया। । इसके कितने ही समय बाद किसी एक दिन क्षीरकदंबके पुत्र पर्वसने अनेक शिष्यों के सामने व्याख्यान देते समय
कहा कि “यज्ञकर्ममें वेदके मन्त्र पढ़ते हुए अज अर्थात् अजाके पुत्र बकरेको अग्निमें डालकर होमना चाहिये ।। PM उसके इस व्याख्यानको सुनकर नारद ब्राह्मण कहने लगा कि हे पर्वत ! तू मेरा गुरुभाई है और गुरुका पुत्र है।
तुझे ऐसे झूठ और हिंसामय वचन कभी नहीं कहने चाहिये। तेरे पिताने ( हमारे तेरे दोनोंके गुरुने ) पढ़ाते । । समय यशकमंके प्रकरणमें अज शब्दका अर्थ बकरा नहीं बतलाया था किन्तु जो फिर उत्पन्न न हो सके ऐसे है