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F कलाः मकारजाः। ष स ह ळ एता षवर्गकलाः विन्दुजाः।क्ष एषा कला अव्यक्तजा । अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ अं अः एता अवर्गकलाः नादजाः इति प्रणवोस्थ
चर्चासागर [ २२९ ।
अर्थात् क ख ग घ ङ च छ ज श ये तो सब कलायें अकारसे उत्पन्न हुई हैं सो इन सबका अ लेना। चाहिये । सयाद तुसाद साहलाएं उकारसे उत्पन्न हुई हैं सो इन सबका एक उ लेना
चाहिये । प फ ब भ म य र ल व श ये सब कलाएं मकारसे उत्पन्न हई हैं इसलिये इन सबका मकार लेना १ चाहिये । ष स ह ळ ये सब बिन्दुसे उत्पन्न हुई हैं सो इनका बिन्दु लेना चाहिये। क्ष अव्यक्तकलासे उत्पन्न हुआ है तथा अ आ इ ई उ ऊ ल ल ए ऐ ओ औ अं अः ये सोलह कलाएं नादसे उत्पन्न हुई हैं । इस प्रकार इन सब कलाओंका एक नाद शन्द ब्रह्ममय ओं बनता है।
यहाँपर थोड़ासा नादका स्वरूप ( अन्य मतके अनुसार ) लिखते हैं--
एकबार शिव अर्थात् महादेवने कैलाश पर्वत पर अपना डमरू बजाया था उसमेंसे चौवह सूत्र निकले ई थे जो 'अ इ उ ण' 'ऋ लक्' ऐ, ओ, ऐ औ, हयवर लण, यमणनम्, भ ञ घडघा, ज ब ग ड द श, । खफ छ ठ थ च ट त ब, क प य, श ष स र हल् नामसे कहलाते हैं इन्हींसे सब अक्षर बने हैं सो हो । लिखा है।
नृत्यावसाने नटराजराजो ननाद ढकका नव पंच वारान् । ऐसा पाणिनीयमें लिखा है। इन सब अक्षरमय अ उम् इनको पहले के अनुसार उवणे ओ। मोनुस्वारः । और छंदसि इन सूत्रोंसे सिद्ध करनेपर ॐ बन जाता है। इन सूत्रोंकी और साधनिका पहले लिख चुके हैं । इस प्रकार सब अक्षरोंसे ॐ बनता है इसलिये सबसे पहले उच्चारण किया जाता है ।
इस एक ही अक्षरके 'ॐ' मंत्रको 'ॐ नमः' इस प्रकार नमस्काररूप योगी लोग सदा ध्यान करते हैं। इसका विशेष वर्णन कानार्णवसे समझ लेना चाहिये। इस ॐ की महिमा अगम अपार है। ऐसा यह ओंकार है।
इसको अन्यमती भी अपने-अपने इष्ट देव रूप मान कर ध्यान करते हैं। दौथ तो इसको शिवरूप ।