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चर्चासागर [२३५]
जनपवस्पर्शित श्रेष्ठ पुष्पमाला भव्यजीवोंको आशिक के लिए मस्तकपर धारण करनी चाहिए। सो ही प्रतिष्ठापाठमें लिखा है-
जिनांधिस्पर्शमात्रेण त्रैलोक्यानुग्रहक्षमां । इमां स्वर्गरमा दूतीं धारयामि वरलजम् ॥
'भगवजिनसेनाचार्य भी आदिपुराणके व्यालीसर्वे पर्वमें ऐसी मालाके लिए लिखा है। जिस प्रकार उत्तम कुलमें उत्पन्न हुए बालक अपने गुरुकी मालाको अपने मस्तकपर धारण करते हैं उसी प्रकार उनको भगवान के चरण स्पर्शित माला भो अपने मस्तकपर धारण करना चाहिए। सो ही आदिपुराण में लिखा है-तथाहि कुलपुत्राणां माल्यं गुरुशिरोघृतम् । मान्यमिव जिनेंद्राधिस्पर्शात्मा ल्यांग भूषितम् ॥
जिनयक्ष कल्पकी वृत्तिमें लिखा है कि श्री जिनेश्वर के चरण स्पर्शित पूजाकी माला महाभिषेक के अंतमें बहुत सा धन देकर लेनी चाहिए। यह माला अनर्घ्य ( अमूल्य ) है । इसलिए भव्यजीवोंको अवश्य ग्रहण करनी चाहिए। सो ही वृत्तिमें लिखा है
श्रीजिनेश्वरचरणस्पर्शितानयपूजाव्रतां सा माला महाभिषेसावसाने बहुधनेन माझा भव्यश्रावकेनेति ।
इससे भी ऊपरकी बात ही सिद्ध होती है ।
अजितनाथकी माता जयसेनाने पहले कुमार अवस्थामें पर्वका उपवास कर पारणाके दिन भगवानकी पूजा कर तथा उनके पदस्पति पूजाको परम पवित्र पुष्पमाला पापोंका नाश करनेके लिए सभामें आकर अपने पिताको दी थी तथा राजाने बड़ी भक्तिसे अपने दोनों हाथोंसे लेकर अपने मस्तक पर धारण की थी । तबनंतर अपनी पुत्रीको पारणाके लिए विवा किया था। सो ही अजितपुराणमें लिखा है-
जयसेनापि सद्धर्मं तत्रादायैकदा मुदा । पर्वोपवासपरिम्लानतनुरभ्यर्च्य साईतः ॥ तत्पादपंकजा श्लेषा पवित्रा पापहानये । चित्रा पित्रापि तद्वाभ्यां हस्ताभ्यां विनयेन च ॥ तामादाय महीनाथ भक्त्या पश्य जयाभिधाम् । उपवासपरिश्रान्तां पारयेति विसर्जताम् ॥ इस प्रकार लिखा है ।
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