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दूसरा धर्म उत्तम मार्वव है । कुल, जाति, ज्ञान, पूजा, बल, ऋद्धि, तप, शरीर आदिका अभिमान न कर कोमल भाव धारण करना अर्थात् यदि अपनेमें कुछ ऊंचे और सर्वोत्तम गुण भी हों तो भी उद्धतता धारण न करना, सदा कोमल परिणाम रखना उत्तम मार्वत्र नामका दूसरा धर्म है।
तीसरा धर्म उत्तम आर्जव है। माया वा छल, कपटको छोड़कर सदा सरलता वा निष्कपटता धारण करना मन, वचन, कायको प्रवृत्तिको सवा सरल रखना, मन, वचन, शरीरमें किसी प्रकारका कपट न रखना। । सो उत्तम आर्जव है। is ........ ....... ।
चौथा धर्म उत्तम शौच है। बाह्य-आभ्यंतरके भेदसे दोनों प्रकारकी पवित्रता धारण करना उत्तम । शोच है बाह्य विशुद्धि तो जल, मिट्टी आदिसे होती है और अंतरंगको शुद्धि मंत्रोंके जप करनेसे तथा मनको शुद्ध रखनेसे ( लोभका सर्वथा त्याग कर देनेसे ) होती है। इस तरह दो प्रकारका शौच है सो गृहस्थ श्रावकको तथा मुनियोंको यथायोग्य धारण करना चाहिये । यह चौथा शौच नामका धर्म है।
पांचवों धर्म सत्य है । मूठ बोलनेका सर्वया त्याग कर देना और सवा सत्यवतका पालन करना उत्तम ॥ सत्य नामका धर्म है।
छठे धर्मका नाम संयम है । वह दो प्रकार है-इन्द्रिय संयम और प्राणि संयम । पांचों इन्द्रिय और मनको गतिको रोकना इन छहोंको वशमें करना सो इन्द्रिय संयम है तथा छहों कायके प्राणियोंको रक्षा करना। । उनको दया पालन करना सो प्राणी संयम है। इन दोनों प्रकारके संयमोंका पालन करना सो संयम नामका धर्म है।
सातवा धर्म तप है । उसके दो भेद हैं बाह्य और आभ्यंतर। अनशनाविक छह प्रकारका बाह्य तप । है तथा प्रायश्चित्ताविक छह प्रकारका अंतरंग तप है। इन दोनोंके भेदसे बारह प्रकारका सपश्चरण पालन करना सो साता उत्तम तप नामका धर्म है।
आठवां धर्म उत्तम त्याग है। त्याग दानको कहते हैं। वह दान चार प्रकार है-आहार, औषध, 1 उपकरण और वसतिकाका देना, मुनि आदि पात्रोंको भक्तिपूर्वक दान देना चाहिये । दोन अनाथोंको करुणादान #.देना चाहिये । समस्त जीवोंको अभयदान देना चाहिये। रोगियोंको औषघवान देना चाहिये। तथा मुनि का।