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बर्षासागर
लिखकर 'लव्य' यह सकाराबि पिडाष्टक लिखना चाहिये। सातवें पत्रमें यकारादि अर्थात् 'य र ल व ॥ लिखकर 'स्म्य" इस सकारादि पिंडाष्टकको लिखना चाहिये। फिर आठवें पत्रमें 'श ष स ह लिखकर व्य यह खकाराविक पिंडाष्टक लिखना चाहिये । इस प्रकार आठों पत्रोंको भर देना चाहिये।
उसके बाद वलय देकर फिर आठ दलका कमल बनाना चाहिये। उन आठों पत्रोंमें वेद मायावीजपूर्वक चतुर्थी विभक्ति और नमः शब्दके साथ अलग-अलग अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुतत्त्वदृष्टिसम्यग्चारित्रान् । लिखना चाहिये । उनका क्रम इस प्रकार है। पूर्व विशाके पहले दलमें ही अहंदभ्यो नमः' बायीं ओर दूसरे बलमें 'ॐ ह्रीं सिद्धेभ्यो नमः' तीसरे पत्र में ही सूरिभ्यो नमः' चौथे दलमें 'ॐ ह्रौं पाठकेभ्यो नमः'
या वल " ही सहाय नमः छ पत्रमे 'ॐ ह्रीं तत्वदृष्टिभ्यो नमः' सातवें पत्रमे 'ॐ ह्रीं सम्यगशानाय नमः' आठवें पत्रमें 'ॐ ह्रौं सम्यक्चारित्रेभ्यो नमः' लिखना चाहिये। इस प्रकार दूसरा आठ दलका कमल भी भर देना चाहिये।
फिर उसके बाद बलय देकर सोलह बलका कमल बनाना चाहिये । उसमें अनुक्रमसे ब्रह्म मायाबोजादि। चतुर्थीयुक्त नमः शब्दके साथ भावनेन्द्र आदि सोलह इन्द्र देवोंको लिखना चाहिये । उसका नाम और क्रम । इस प्रकार है । पूर्वविशाके पहिले पत्रमें 'ॐ ह्रीं भावनेन्द्राय नमः' लिखना चाहिये फिर बायों ओरके दूसरे । बलमें 'ॐ ह्रीं व्यन्तरेन्द्राय नमः'तीसरे पत्रमें 'ह्रीं ज्योतिष्केनाय नमः' लिखना चाहिए। चौथे बलमें 'ॐ ही कल्पेन्द्राय नमः', पांच दलमें 'ॐ ह्रीं श्रुतावविभ्यो नमा', छठे पत्रमें 'ॐ ह्रीं देशावधिभ्यो नमः', सातवे । पत्रमें 'ॐ ह्रीं परमावधिभ्यो नमः', आठवें पत्रमें 'ॐ ह्रीं सर्वावधिभ्यो नमः', नौ दलमें 'ॐ ह्रीं बुद्धिऋद्धिप्राप्तेभ्यो नमः' दश कोठेमें 'ॐ हीं सौंपर्धातऋजिप्राप्तभ्यो नमः' लिखना चाहिये, ग्यारहवें बलमें 'ॐहीं अनन्तबाखप्राप्तेभ्यो नमः', बारहवें पत्रमें 'ॐ ह्रीं तप्ततिप्राप्तेभ्यो नमः', तेरहवें वलमें 'ॐ ह्रौं रसद्धिप्राप्तेभ्यो नमः', चौदहवें पत्रमें 'ॐ ह्रीं विक्रियद्धिप्राप्तेभ्यो नमः', पन्द्रहवें कोठेमें 'ॐ ह्रीं क्षेत्रद्धिप्राप्तेभ्यो । नमः' और सोलहवें बलमें 'ॐ ह्रीं अक्षीणमहानसद्धिप्राप्तेभ्यो नमः' लिखना चाहिये। इस प्रकार सोलह बल कमलको पूर्ण कर देना चाहिये।
उससे बाहर वलय देकर चौबीस दलका कमल बनाना चाहिये और उसमें पूर्व विशासे प्रारम्भ कर !
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