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१६०-चची एकसौ साठवीं प्रश्न-ऋषिमंडल स्वरूप क्या है तथा उसका आराधन किस प्रकार है ? वर्षासागर
समाधान-आगे ऋषिमंडल यन्त्रका स्वरूप और आराधन कहते हैं । यह यन्त्र सोना, चांदी, कांसा, [२०८]
तांबा अथवा भोजपत्र पर लिखना चाहिए। सबसे पहले मध्यमें गोल कणिका बनानी चाहिये । उसमें द्विगुण (बो-दो लकीरोंके बोधमें) 'ही' ऐसा ह्रींकार बताना चाहिए उस होंकारमें नीचे लिखे अनुसार अनुक्रम ऋषभसे
लेकर बर्द्धमान पर्यन्त चौधोसों तीर्थंकरों के नाम चतुर्थी विभक्तिके साथ तथा नमः शम्बके साथ लिखना चाहिए। । उनका क्रम इस प्रकार है।।
ऋषभांजिशंभवाभिनन्दनसुमतिसुपार्श्वशीतलश्रेयोविमलातन्तधर्मशान्तिकुथ्वरेमल्लिभ्यो नमः' इस प्रकार इन चौवह तीर्थकरों के नाम तो ह्रींकारके हकारमें लिखना चाहिए तथा "बळमानेभ्यो नमः" यह ह्रींकारके नीचे लगे रेफमें लिखना चाहिए । फिर 'पद्मप्रभवासुपूज्याभ्यां नमः' यह होंकारके मस्तकपर लिखना चाहिए। फिर 'चन्द्रप्रभपुष्पदन्ताभ्यां नमः' यह कलाम लिखना चाहिए तथा 'नेमिमुनिसुव्रताभ्यां नमः' यह विन्दुमें। लिखना चाहिए । फिर सुपार्श्व'पाश्र्वनाथमल्लिभ्यां नमः' यह ईकारमें लिखना चाहिए। फिर 'नमिभ्यो नमः" यह रेफके आगे उससे लगता हुआ लिखना चाहिये। इस प्रकार कणिकाको पूरा कर फिर उसके बार्गे वलय
सके बाहर आठ दलका कमल बनाना चाहिए। उस कमलके आठों पत्रोंमें पर्व विजयासे प्रारम्भ कर बायीं ओर होते हुए अनुक्रमसे अकराविक आठों वर्गीको पिडाष्टकके साथ लिखना चाहिए अर्थात् पूर्व दिशाके पहले बलमें अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋल ल ए ऐ ओ औ अं अः इन सोलह स्वरोंको लिखकर 'हल्ल्य यह
"हम ल व ऊर्वरकार यकार अघोरकार अर्धचन्द्राकार अनुस्वार और नीचे 'ऊकार' इन सब अक्षरोंसे मिला महुआ वर्ण लिखना चाहिए । फिर बायीं ओरके दूसरे पत्र क ख ग घ ' इन कवर्गके पांचों अक्षरोंको लिख
कर 'भाप इस भकारादि पिअष्टकको लिखना चाहिए। फिर तीसरे पत्रमें चवर्ग अर्थात् 'च छ जसअ' लिखकर मस्र्य' यह मकारावि पिंडाष्टक लिखना चाहिये। फिर चौथे, पत्रमें टवर्ग अर्थात् '26 तुण' लिखकर व्यं' इस रकारादि पिंडाष्टकको लिखना चाहिये। पांचवें पत्रमें तवर्ग अर्थात् 'तपय वन' " लिखकर 'लव्यं । इस धकारादि पिडाष्टकको लिखना चाहिये। छठे पत्रमें पवर्ग अर्थात् प फ ब भ म'
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