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१०५-चर्चा एकसौ पाँचवीं प्रश्न--प्रतिमा कौन-सी प्रतिष्ठा मोरया नहीं है अर्थात कैसी प्रतिमाको प्रतिष्ठा नहीं करनी चाहिये तथा सागर कैसी प्रतिमा प्रतिष्ठा करने योग्य है ? १२] समाधान-ध्यंगित प्रप्तिमा ( जिसके अंग उपांग खण्डित हैं ) जर्जरीभूत प्रतिमा ( बहुत प्राचीन जो
| खिरती हो जीर्ण-शीर्ण हो) जिस प्रतिमाको प्रतिष्ठा पहले हो चुको हो, जो दुबारा बनायी गयो हो अर्थात् जिसके अंग भंग हो गये हों और फिर गढ़ कर बनायो हो, और जिन प्रतिमाओंमें कोई सन्देह हो ऐसी जिन प्रतिमाएँ प्रतिष्ठा करने योग्य नहीं हैं तथा जिस प्रतिमाको नाक, मुख, नेत्र, हृदय, नाभिमण्डल आदि अंग भंग हो गये हों, वह भी पूजा करने योग्य नहीं है। सो ही प्रतिष्ठाशास्त्रमें लिखा है। व्यंगितां जर्जरां कौव पूर्वमेव प्रतिष्ठिताम् । पुनर्घटितसंदिग्धां प्रतिमां नो प्रतिष्ठयेत् ॥ नासामुख तथा नेत्रे हृदये नाभिमंडले । स्थानेषु व्यंगितेष्वेषु प्रतिमां नैव पूजयेत् ॥ ।
यहाँ पर फिरसे बनायो गयो प्रतिमाकी प्रतिष्ठाका जो निषेध किया है उसका अभिप्राय यह है कि जिस प्रतिमाके उपांग खण्डित हो गये हों और फिर सुधार कर वह दुबारा बनायी गयो हो तो ऐसी प्रतिमाको प्रतिष्ठा नहीं करानी चाहिये । तथा जो प्रतिमा शिल्पि शास्त्रों में कहे हुए लक्षणोंसे सुशोभित हो और सांगोपांग हो ऐसी प्रतिमाको प्रतिष्ठा करना योग्य है । सो हो प्रतिष्ठापाठमें लिखा है। यद्विम्बं लक्षणयुक्त शिल्पिशास्त्रनिवेदितम् । सांगोपांगं यथायुक्त्या पूजनीयं प्रतिष्ठितं ॥
प्रश्न--जो प्रतिमा पूर्व प्रतिष्ठित है उसका यदि उपांग ( उँगली आदि ) खण्डित हो जाय अथवा मस्तक हीन हो जाय तो उसकी पूजा स्तुतिका विधान किस प्रकार है ?
समाधान-जिस प्रतिमाको उँगलीका अग्रभाग अथवा कुछ कानका भाग पर कुछ नाकका भाग स्खण्डित हो तथा बह प्रतिमा पूर्व प्रतिष्ठित हो. और अतिशय सहित हो तो वह प्रतिमा पज्य है को पूजा, स्तुति, नमस्कार आदि करने में अपने बुरे भाव नहीं करने चाहिये। यदि ऐसी प्रतिमा अतिशयरहित।
हो तो वह पुज्य नहीं है तथा जो प्रतिमा मस्तकहीन हो तो उसको जलाशयमें क्षेपण कर देना चाहिये। मस्तक। होन प्रतिमाको चैत्यालयमें नहीं रखना चाहिये, इस प्रकार मरेन्द्रसेनकृत प्रतिष्ठादीपकमें लिखा है । यथा
समिरमानापन्ज
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