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सिागर
भावार्ष-दोनों बगलोंमें जलती हुई नामकी अग्निसे भगवानकी आरती करता हूँ वे भगवान मेरी। आरमाको उज्ज्वल वा निर्मल करें।
५ ॐ ह्रीं क्रौं सुरभिशशिविमलसलिलपरिपूर्णेनामलिना भगवतोऽहतोवतरणं करोमि विमलशोतलध्यानमस्माकमुत्पादयतु भगवान् स्वाहा।
भावार्थ-सुगन्धित और चन्द्रमाके समान निर्मल जलसे भरे हुए दोनों मिले हुए हाथोंसे घेनुमुद्रासहित हाथोंसे भगवानको आरतो करता हूँ। वे भगवान शांत और निर्मल ध्यान मुझमें उत्पन्न करें।
६-ॐ ह्रीं क्रौं पञ्चवर्णभक्तरिकर्भगवतोऽहतोवतरणं करोमि क्षेमं सुभिक्षमस्माकं करोतु भगवान स्वाहा।।
भावार्य--पाच प्रकारके सुम्वर खाद्य पदार्थोसे अथवा पाँच वर्णक चावलोंसे ( भातसे ) भगवानको आरती करता हूँ वे भगवान मुझे सब तरहका कल्याण और सुकाल प्रदान करें।
७-ॐ ह्रीं क्रौं सितहरितपोतकृष्णलोहितवर्द्धमानभंगवतोहतोऽवतरणं करोमि श्रियमस्माकं वर्धमान । करोतु भगवान् स्वाहा।
भावार्थ-सफेद, हरी, पोली, काली, लाल सरसोंसे भगवानको आरती करता हूं वे भगवान मुझे बढ़ती हुई लक्ष्मी प्रवान करें।
८-ॐ ह्रीं क्रौं पवित्रतरुसमुत्पन्नः क्रमुफनालिकेरमातुलिंगपनसवाडिमजंग्याघ्रफल गवतोऽहतोऽवतरणं करोमि अस्माकमाशाफलमृत्पादयतु भगवान् स्वाहा ।
भावार्थ-पवित्र वृक्षोंसे उत्पन्न हुए सुपारी, नारियल, विजोरा, पनस, अनार, जामुन, आम आवि । फलोंसे भगवान अरहन्त देवको आरती करता हूँ। वे भगवान मेरो आशाओंको फलोभूत करें।
इस प्रकार आठों दिशाओं में आठ प्रकारका नोराजन करना चाहिये । नोराजनके पात्रमें ऊपर लिखे
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हुए द्रव्य रखकर आरती वा अवतरण करना चाहिये। नीराजनाके पात्रका आकार ऐसा समझना चाहिये।