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किणिकाके चारों ओर तीन बलय वा घेरा बेकर उसके बाहर पारों दिशाओं में और चारों विविधाओंमें आठ
। संषिया बनाकर उन संधियोंके मध्य में अष्ट बल आकारका कमल बनाना चाहिये। उम अष्ट क्लों में अनुक्रमसे अ बांसागर आ इ ई उ ऊ ऋ ऋतु ल ए ऐ ओ औ अं अः क स ग घ ङ च छ जसअट ण , त थ द ध न, २०१] प फ ब भ म य र ल व ही इसका निशार नाहिये। तथा इन्हीं दलोंमें सोलह स्वरोंमेसे
प्रत्येक बलमें दो-दो स्वर लिखना चाहिये। तथा इन्हीं अष्ट बलोंके अन्तभागमें अनाहत मन्त्र अर्थात् ओंकर सहित अनाहत मन्त्र लिखना चाहिये । तथा उन आठों इलोंके मध्यमें जो आठ संधियाँ हैं उनमें तस्वसे सुशोभित करना चाहिये । "णमो अरहताणं" इस मंत्रको तस्व कहते हैं अर्थात् आठों संषियोंमें "णमो अरहताण" । लिखना चाहिये। फिर तीन वलय देकर भूमण्डलसे वेष्ठित करना चाहिये। फिर भितिवीज और । इन्वायुष लिखना चाहिये । इस प्रकार यंत्र रचना कर सिवनक्रका ध्यान करना चाहिये । जो जीव इस सिद्धचळका व्यान करता है वह बेष्ठ मोक्षपदको प्राप्त करता है। यह सिद्धचक देव शत्रुरूपी हाथियोंको जीतनेके लिए सिंहके समान है, यह सिद्धचकको विधि है सो अच्छी तरह समझ लेना चाहिये।
१५८-चर्चा एकसौ अट्ठावनवीं प्रश्न-शांतिपक यंत्रका स्वरूप क्या है?
समाधान--इसका समुच्चय स्वरूप तो पूजनके वर्गनमें पहले लिख चुके हैं। अब इसका विशेष स्वरूप । यन्त्रोद्वारके द्वारा लिखते हैं।
पहलेके समान बीच में एक कणिका लिखनी चाहिये । फिर वलय कर उसके बाहर चार दिशा और चारों विविशाओंमें अष्ट दलाकार कमल बनाना चाहिये। फिर उसके बाहर वलय देकर पोस्श दलका कमल
१ अनाहत मन्त्रका स्वरूप
उविन्दाकार हरोवं रेफ बिन्द्रानवाक्षरम् । मालाषःस्यन्दिपीयूषविन्दु विदुरनाहतम् ।। उ अनुस्वार ईकार ऊर्ध्वरकार हकार हकार निम्नरकार अनुस्वार ईकार । इन नौ अक्षरोंसे अनाहत मन्त्र बनता है
कवधिोरेफसरुद्धं सपरं विदुलांच्छिएम् । अनाहतयुत मंत्रम् ।।