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फिर सबके बाहर हो ओ क्रों ममावृताय स्वाहा' यह मंत्र लिखकर अनावृत यक्षको स्थापन करमा चाहिए।
तदनन्तर भूमण्डल देकर अष्ट वन सहित क्षिति बोज और अष्ट इन्द्रायुधके बीजकरि सहित लिखना चिसागर
चाहिए।
इस प्रकार यह यन्त्रविधि है। इस प्रकार यन्त्र बनाकर पहिले लिखो विधिके अनुसार पूजा करनी चाहिये।
यह महायंत्र धर्म, अर्थ, काम, मोक्षको सिद्धि करनेवाला है इसलिये इसकी नित्य पूजन करना चाहिये। यह सामान्य शांतिधक है वृहत्शांतिचक्र और है, जो बहुत बड़ा है सो अन्य शास्त्रोंसे जान लेना चाहिये। उसमें इससे भी बहुत विशेष रचना है।
यह मंत्र अनेक गुणोंसे सुशोभित है यह यंत्र पूजा करनेवालेके अनेक विघ्न समूहोंको, अनेक क्षुद्रोपद्रवोंको, अनेक परकृत उपद्रवोंको, अनेक क्षाम डामरारिक कृत्रिम दोषोंको, अनेक अरि, मारी, रावल चौराविक कृत घोर उपद्रवोंको, समस्त अरिष्टोंको, अपमृत्युको, अकिनी, शाकिनी तथा आदिस्याविक दुष्ट ग्रहोंको, भूत, बेताल, राक्षस, पिशाब आदिकोंको तथा स्थावर जंगम विषादिकोंको अनेक दुयाधियोंको दूर करता है। अनेक प्रकारके दुःख समूहोंको दूर करता है तथा अनेक मनोवांछित सुखोंको प्राप्त कराता है। यह यंत्र महापुण्यका कारण है ऐसा जानकर इस यंत्रको नित्य पूजन करनी चाहिये। यह यन्त्र भाग्यहीनोंको अत्यन्त दुर्लभ है।। इसलिये बुद्धिमानोंको इस ऊपर लिखे मंत्रके महत्वको समझ लेना चाहिये ।
१५६-चर्चा एकसौ उनसठवीं प्रश्न-कलिकुछ दंड स्वामोका यन्त्र और उसकी विधि क्या है ?
समाधान-सबसे पहले कलिकुण्ड बंज स्थामीका अर्थ लिखते हैं। कलि सम्वका अर्थ क्लेश है वह अनेक प्रकार हे आधि-व्याषिसे उत्पन्न होनेवालो अर्थात् मन और शरीरसे होनेवाली पोड़ासे उत्पन्न होनेवाले
अनेक प्रकारके क्लेश क्लेश कहलाते हैं तथा कुण्ड शब्दका अर्थ समूह है। कलि अर्थात् क्लेशोंके कुण्ड अर्थात् । समूहको कलिकुण्ड कहते हैं उन क्लेशोंके समूहको दूर करनेके लिये नासा करनेके लिये जो बंडके समान हो ।
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