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सागर १२२ ]
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करना, देवपूजन करना, धान देना मना है तथा रात्रि भोजन करनेका त्याग विशेष रीतिसे बतलाया है। फिर कहा है-उदंबर फल ( पोपलफल, बरफल, गूलर, पाकर, अंजोर ) भी मांस है, बिना छमा जल भी । मांस है, चमड़ेके बर्तन में रक्खा हुआ जल, घो, वृष मावि भी मास है, और रात्रिमें भोजन करना भी मांस, भक्षण है। रात्रि भोजन करनेसे ये जीव मरकर परलोकमें उल्लू, कौमा, बिल्ली, गोध, सूअर, सर्प, बिच्छू, गोह, गोहरा, विस्मरा आदि महानीच योनियों में उत्पन्न होता है।
इसके सिवाय ये लोग ऋषियोंके लिये कंदमूलके आहार करनेका बड़ा माहात्म्य बतलाते हैं परन्तु । । शास्त्रोंमें कंदमूल भक्षणके बड़े दोष बतलाये हैं। जैसा कि पहले भी कह चुके हैं--
__ मद्यमांसाशनं रात्री भोजन कंदभक्षणम् । ___ इसके सिवाय प्रभासखंडमें लिखा हैपुत्रमांसं वरं भुक्तं न च मुलकभक्षणम् । भक्षणान्नरकं याति वर्जनारस्वर्गमाप्नुयात् ।। । अज्ञानेन मया देव कृतं मूलकभक्षणम् । तत्पापं प्रलयं यातु गोविंद ! तव कीर्तनात् ॥
रसोनं जिनं चैव पलांडु पिंडमूलकम् । मत्स्यमांसं सुरां चैव मूलकं च विशेषतः॥ H अर्थात-पुत्रका मांस खा लेना अच्छा परन्तु कंदमूल खा लेना अच्छा नहीं क्योंकि कंदमूलका भक्षण करनेसे यह जोव नरक जाता है और कंबमूलका त्याग कर देनेसे स्वर्गको प्राप्ति होती है ॥ १॥ भक्त लोग श्रीकृष्णसे कहते हैं कि हे गोविंद देव ! हमने अपने अज्ञानसे कंदमूल खाये हैं सो आपकी स्तुति करनेसे हमारे वे सब पाप नष्ट हो जाय ॥ २॥ रसोन अर्थात् लहसन, गजिन अर्यात् गाजर, पलांडु अर्थात् प्याज, कांदा, पिंडालू मूली, मछलीका मांस और मछ इनका विशेष रीतिसे त्याग कर देना चाहिये।
शिवपुराणमें भी लिखा है। यस्मिन् गृहे सदा नित्यं मूलकं पच्यते जनः। श्मशानतुल्यं तद्वेश्म पितृभिः परिवर्जितम् ॥ [ १२२
मूलकेन समं चान्नं यस्तु भुक्ते नराधमः। तस्य शुचिर्न विद्येत चांद्रायणशतेरपि ॥ ॥ भुक्तं हालाहलं तेन कृतं चाभक्ष्यभक्षणम् । वृत्ताकभक्षणं चापि नरो याति व रोरवम् ॥
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