________________
वर्षासागर [१६४]
चंपा और कमलके फूलोंको कलियाँ अलग-अलग कर निकाल लेते हैं अर्थात् उनको प्रफुल्लित कर लेते हैं अथवा I उनकी पंखुड़ियां अलग-अलग निकाल लेते हैं उनको जोव हिंसाके समान फल लगा करता है। इसलिये पुष्पोंको । अलग-अलग छिन्न-भिन्न कर पा कलियाँ निकाल कर नहीं चढ़ाना चाहिये । सो ही उमास्वामिविरचित भावकाधार में लिखा है--
हस्तात्प्रस्खलितं क्षितो निपतितं लग्नक्वचित्पादयोः । यन्मूखर्वोछ्र्वगतं धृतं कुवसने नाभेरधो यद् धृतम् ।। स्पृष्टं दुष्टजनैरभिहितं यदृषितं कीटक।
स्याज्यं तत्कुसुमं वदति विबुधाः भक्त्या जिनः पूज्यते ॥ नैव पुष्पं द्विधा कुर्यान्न छिन्नकलिकामपि । चंपकोत्पलभेदेन जीवहिंसासमं फलम् ॥ । न ऐसा शास्त्रोंका मत है। इसी प्रकार जल, फल आवि आठों द्रव्यों से जो अयोग्य हों सो पूजामें नहीं। लेना चाहिये । विवेकी पुरुषों को योग्य द्रव्यसे हो पूजा करनी चाहिये।
प्रश्न-ऊपर लिखे हुए पुष्प किस प्रकार बढ़ाना चाहिये ?
समाधान-लौकिक शास्त्रों में ऐसा लिखा है। पुष्पं चोर्वमुखं देयं पत्रदेयमधोमुखम् । फलं च सन्मुखं देयं यथोत्पन्नं समर्पयेत् ॥
अर्थात्-पूजामें पुष्प तो ऊपरको ओर मुख कर चढ़ाना चाहये । उसको डोंडो नोचेको ओर रहनो। चाहिये, नागवेलके पान आदि पत्रोंको अधोमुखो चढ़ाना चाहिये। उसको अनी नीचे रहे और डंठल ऊपरको हो। तथा फल सामने चढ़ाना चाहिये । पुष्प, पत्र और फल जैसे वृक्ष पर लगते हैं उसी प्रकार उनको बढ़ाना चाहिये । यह नियम पुष्पमाला अथवा पुष्पांजलिके लिए नहीं है । पुष्पमाला और पुष्पांजलिमें जिस प्रकार बन सके उसो प्रकार चढ़ाना चाहिये।
१४६- चर्चा एकसौ छयालीसवीं प्रश्न--प्रातःकालको पूजाको विधिमें जल, चनसे ही पूजा करनेका विधान बतलाया परन्तु हम सो