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दिसे
कर उससे भगवानके समस्त शरीरमें उवर्तन वा उबटना करना चाहिये। फिर 'ॐ ह्रीं श्रीं क्लों ऐं अहं वं मा
हंसं तं पं इत्यादि ऊपर लिखा मन्त्र पढ़कर तथा 'पवित्रतरजलेन' की जगह 'पवित्रतर चतुष्कोण कुम्भजलन। पर्चासागर
पूर्ण कुम्भजलेन च जिनमभिषेश्यामि स्वाहा' यह मन्त्र पढ़कर चतुष्कोणके कलशोंके जलसे तथा पूर्ण कुम्भके। [१८६ ] जलसे भगवानका अभिषेक करना चाहये। यह चतुष्कोणकुम्भस्नान और पूर्ण कुम्भस्नान कहलाता है। फिर
'ॐली निखिवललोकांवत्रीकरणगन्धोदकेन जिनमभिषेचयामि स्वाहा' यह मन्त्र पढ़कर चन्दन, केशर मिले हुए जलसे ( गन्धोदकसे ) भगवानका अभिषेक करना चाहिये । इसको गन्धोवक स्नपन कहते हैं । तवम नन्तर इस गन्धोदकको अपने समस्त उत्तम अंगोंपर लगाना चाहिये। फिर अभिषेकके पात्रमें और भंगारमें।
(टनी लगे हुए छोटे लोटेमें ) पूर्ण जल भरकर भगवानके ऊपर मन्त्रपूर्वक शांतिधारा देनी चाहिए । शांतिधाराका पाठ करना और जल छोड़ते जाना सो शांतिधारा है । वह मन्त्र इस प्रकार है । ॐ ह्रीं क्रौं अहं मम । पापं खण्ड खण्ड, वह वह, बुःखं हन हन, वो बों बः पः हः झंव के क्षों शं क्षों क्ष: ओ क्रो ब्रां ॐ ह्रीं ।
ठः श्रीरस्तु सिद्धिरस्तु पुष्टिरस्तु कल्याणमस्तु स्वाहा' इति लघुशान्तिधारा। यह लघुशांतिधारा पाठ है।। बड़े-बड़े कार्यों में महाशांति धाराका पाठ पढ़ना चाहिये। फिर जिन प्रतिमाके चरणोंपर गन्ध लेपन कर तथा । प्रतिमाको वस्त्रसे पोंछकर यन्त्र सहित सिंहासनपर विराजमान कर देना चाहिये। फिर अरहन्त भक्तिका पाठ करना चाहिये । अयवा अरहन्त भगवानका कोई भी स्तोत्र बोल लेना चाहिये। फिर 'यद्गर्भावतरे गृहे ।। पितुरपि प्रागेव शक्राज्ञया' इत्यादि अरहन्त भक्तिका पाठ है सो दश भक्तियोंमेंसे देख लेना चाहिये।
तवनन्तर आगे बैठकर शांतिचक्र यन्त्रके आगे जलाविक फल पर्यन्त समस्त सामग्री चढ़ाकर जा ॥ करनी चाहिये । वह पूजा इस प्रकार है
यन्त्रके मध्य स्थित अष्टपत्रोंमें जो अरहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, सर्वसाधु तथा सम्यग्दर्शन, ज्ञानचारित्र, तप इनको पूजा सबसे पहले करनी चाहिये । पूजा करनेका मंत्र यह है---'ॐ ह्रां ह्रीं हं. हो हः । । सि आ उ सा जलं गृहाण गृहाण नमः स्वाहा' इस मन्त्रको पढ़कर जल चढ़ाना चाहिये तथा यही मन्त्र पढ़कर जलको जगह उस व्यका नाम लेकर अनुक्रमसे गन्ध, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, दीप, धूप, फल, अर्घ चढ़ाकर ।
चाहिये। फिर पूर्णा देकर 'ॐ ह्रीं सम्यग्दर्शनाय नमः' हों सम्यग्ज्ञानाय नमः, ॐहीं सम्यक्चारित्रेभ्यो नमः, *हों सम्यक्तपसे नमः' ये मन्त्र अलग-अलग पढ़कर पूजा करनी चाहिये।