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पर्चासागर [१५]
करती हैं तो फिर अन्य स्त्रियाँ अष्टांग वा पंचांग नमस्कार किस प्रकार कर सकती हैं उनके लिये अष्टांग वा पंचांग नमस्कार करमा अयोग्य है इसलिये नहीं करना चाहिये।
१५१-चर्चा एकसौ इक्यावनवीं प्रश्न--पहले अध्य, पाचं ऐसा लिखा है सो अर्घ्य और पाद्य किसको कहते हैं ?
समाधान–पय अर्थात् जल, क्षार अर्थात् वृष, कुश अर्थात् बाभ, उशीर अर्थात् पशखस, सिल, अक्षत, जो ये सब अर्ध्य द्रव्य कहलाते हैं इनमें सफेद और काली सरसों और मिलानी चाहिए । सो ही पूजासारमें लिखा हैपयक्षीरकुशोशीरं तिलाक्षतयवान्वितम् । अर्घ्यद्रव्यमिति प्रोक्तं सश्यामासितसर्षपम् ॥
इसी प्रकार कमलको जड़, सरसों, दूव और अक्षतको पाच द्रव्य कहते हैं। यह पायव्य भगवानके अभिषेकमें लिया जाता है सो ही पूजासार लिला है...
समूलपद्मसिद्धार्थ दुर्वामृततृणाक्षतम्! पाचव्यमिति प्रोक्तं जिनस्नपनपूजने ॥ इस प्रकार अयं और पायका स्वरूप समझना चाहिये।
१५२-चर्चा एकसौ बावनवीं प्रश्न-पूजामे मंगल द्रव्य वा मंगलायं कहा है सो मंगलाध्य किसको कहते हैं ?
समाधान-बूव, स्वस्तिक अर्थात् नंद्यावर्त अथवा केवलम्साथिया, दर्भ अर्थात् वाभ, कमलफल (कमलगट्टा ) नदीके किनारेको शुद्ध मिट्टी, भूमिमें नहीं पड़ा हुआ गोमय, श्रीखंड अर्थात् बावन चंदनादिक सुगंधित द्रव्य, सुवर्ण, चांदी, पुष्प, बीपक, भृगार, सरसों, तिल, शालि अक्षत, केशर, जौ, धूप ये सब मंगल । सूचक द्रव्य है सो अभिषेक वा पूजाके समय भगवानके आगे किसो पात्रमें रखकर अय॑के समान उतार कर चरणों के आगे बढ़ाना चाहिये । इसीको मंगलावितरण कहते हैं । सोही धर्मदेवकृत शांतिचक्र पूजामें लिखा हैदुर्वास्वस्तिकदर्भपद्मकनदीमृद्रोचनागोमयः, श्रीखंडोत्तमहेरोप्यकुसुमश्रीदीपभृगारकान् ॥ [ १
सिद्धार्थ तिलशालिकुकुमयवप्रत्याधुपादिकान् । सर्वान् मंगल सूचकान् क्रमयुगस्योत्तारयाम्यहंतः॥