________________
पर्यासागर [ १९४]
चाहिये और दूसरा पल्ला पीछेको ओरसे लाकर दाएं कंधेपर लाते हुए हृदय की ओर नीचे लटका कर उस पलेसे भूमिको देखते हुए सम्माजन करना चाहिये । तबनंतर साष्टांग वा पश्चांग अथवा पश्वर्द्धयायि नमस्कार करना चाहिये। फिर भक्तिपूर्वक अपने समयके अनुसार खड़ा होकर अपने दोनों चरण समान रखकर अपनी दुष्टिसे भगवानको देखना चाहिये। अपने दोनों हाथ जोड़कर ललाट तथा हृदयपर रखना चाहिये। फिर कुछ नम्र होकर प्रदक्षिणा करनी चाहिये फिर नमस्कार कर उठकर फिर नमस्कार करना चाहिये । इस प्रकार है तोन बार कर अपनी बुद्धि के अनुसार भगवानकी स्तुति करनी चाहिये। फिर जहाँपर समता धारण हो सके। | ऐसे समता स्थानमें जाकर सामायिक करना चाहिये। फिर अपने समयके अनुसार देव, शास्त्र, गुरुको पूजन करना चाहिये । इसको विधि पहले लिख चुके हैं। फिर भक्तिपूर्वक स्तुति और नमस्कार करना चाहिए। फिर ॥ पहले कहे हुए क्षेत्रपाल, पथावती आदि शासन देवताओंको क्रमसे अर्घादिक देना चाहिये। फिर सभामण्डपमें जाकर जिनश्रुत ( शास्त्र ) और मुनिजनोंको भक्तिपूर्वक नमस्कार करना चाहिये । श्रीगुरुके शरीराविकका समाधान पूछना चाहिये । फिर अपनी भक्ति के अनुसार विग्वत, देशवत, अनर्थवण्डवत आदि व्रतों से नित्य व्रत श्रीगुरुको आज्ञानुसार ग्रहण करने चाहिये । तथा उन्हीं गुरुराजके मुखसे तत्त्वार्थोंको कहनेवाले शास्त्र आवि जिनश्रुतका व्याख्यान सुनना चाहिये । अथवा दूसरोंको सुनाना चाहिये । अपने मन, वचन, कायसे जिनधर्मका । उद्योग करना चाहिये। फिर अपने घर आकर पात्रवान देना चाहिये फिर भोजन पान कर न्यायपूर्वक पापरहित कार्योसे यथायोग्य अपनी जीविका करनी चाहिये।
इस प्रकार श्रावक व्रतके धारण करनेवाले गृहस्थोंकी यह प्रातःकालकी क्रियाको विधि है। इसका । विस्तार बहुत है परन्तु यहाँ थोड़ा-सा लिखा है । जिनको इसका वर्णन बेखना हो वे भगववेक संधिकृत जिन। संहिता शास्त्र तथा पूजासार शास्त्र तथा धर्मरसिक शास्त्र और पूजाको विषि जिनयज्ञकल्प, प्रतिष्ठापाठ महाभिषेक तथा शांतिचक्रपूजा प्रकरण तथा और भी अनेक शास्त्रोंमें देख लेना चाहिये । यहाँपर ऊपर लिखे शास्त्रोंमेंसे थोड़ा-सा लिखा है।
१५०-चर्चा एकसौ पचासवीं प्रश्न-पहले जो अष्टांग, पञ्चांग और परमवशायि नमस्कार करना लिखा है सो इनका स्वरूप क्या है?