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अष्टद्रव्यसे पूजा करनेको पूजा समझते हैं। अब केवल जल, चंदनसे हो पूजा करनेका विधान है तब फिर अष्ट
द्रव्यसे पूजा कौन करेगा? चर्चासागर
समाधान-सबसे पहिले भगवानका जलसे अभिषेक करना चाहिये फिर चरणों पर गंधका लेप कर [ १६५ ] 1 पीछे अक्षत आविसे भगवानकी पूजा करनी चाहिये ऐसा नियम है । पहले लिख भी चुके हैं
श्रीचदनं विनानैव पूजां कुर्यात्कदाचन । इससे सिद्ध होता है कि चंदनके लेप पूर्वक हो अक्षतादिकसे पूजा होती है । सो ही उमास्वामीविरचित श्रावकाचारमें पूजा प्रकरणके अधिकारमें लिखा है-- गंधधूपाक्षतैः सद्भिः प्रदीपैश्च विचारिभिः । प्रभातकाले पूजा वै विधेया श्रीजिनेशिनाम् ॥
अर्थात् विवेको पुरुषोंको प्रातःकाल गंध, धूप, अक्षत, दीप आदिसे भगवान जिनेन्द्रदेवको पूजा करनी चाहिये।
१४७-चर्चा एकसौ सैंतालीसवीं प्रश्न--भगवानका ध्यान और वंदना किस विधिसे करनी चाहिये ?
समाधान-भव्य जीवोंको भगवानका ध्यान और वंदना अर्थात् नमस्कार भगवानके वाहिनी ओरसे करना पाहिये। सामने खड़े होकर ध्यान और वन्दना नहीं करना चाहिये। दाहिनी ओरसे हो करनी चाहिये । सो । हो उमास्वामी विरचित श्रावकाचारमें लिखा है-- । अर्हता दक्षिणे भागे दीपस्य च निवेशनम् । ध्यानं च दक्षिणे भागे चैत्याना वंदनं तथा ॥
इससे सिद्ध होता है कि भगवानके दाहिनी ओरसे ही ध्यान और वंदना करनी चाहिये। किसी दूसरी ओरसे नहीं।
१४८-चर्चा एकसौ अड़तालीसवीं प्रश्न-स्त्रियों के लिये ध्यान, वंदना करनेकी विधि क्या है ?