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पर्चासागर [ १४६ ]
१३४-चर्चा एकसो चौंतीसवीं प्रश्न-भगवानको पूजा निक्षेप विधियों से किस प्रकारको जाती है।
समाधान--भव्य जीव अपने-अपने समय पर विधिपूर्वक येव, शास्त्र, गुरु आदिको पूजा छह निक्षेपोंसे करते हैं आगे उन्हीं को दिखलाते है। नाम पूजा, स्थापना पूजा, द्रव्य पूजा, क्षेत्र पूजा, काल पूजा, भाव पूजा, है। इन छह निक्षेपोस पूजा करने का विधान श्रीधसुनंदिश्रावकाचारमें लिखा है--
णामट्ठवणा दट्वे खित्ते काले वियाण भावे य।
छव्विह पूया भणिया समासदो जिणवरिंदेहिं ॥ ३८२ ॥ ___ आगे इनका स्वरूप विस्तारपूर्वक बतलाते हैं । जो पुरुष अरहंत आदि पूज्य परमेष्ठियोंका नाम लेकर किसी पवित्र क्षेत्रमें पुष्पादि द्रव्योंको चढ़ाता है वह नाम पूजा कहलाती है। भावार्थ-जिसका नाम लेकर । पुष्प चढ़ाये उसकी नामपूजा की ऐसा समझना चाहिये । सो ही लिखा है--
उच्चार कुणइ णामं अरुहाईणं विसुद्धदेसम्मि ।
पुफ्फाणि जं खिविज्जंति वणिया णामपूया सा ।। इस प्रकार नाम पूजाका स्वरूप है। दूसरी स्थापना पूजा है उसके दो भेद हैं, पहला भेव सद्भाव अथवा तवाकार अथवा साकारके नामसे कहा जाता है और दूसरा भेद असभाव अथवा अतदाकार नामसे , । पुकारा जाता है। इस प्रकार दो भेद हैं । तोना, चाँदी आदि धातुओंके अथवा पाषाण आदिके बने हुए साकार। वाले ( उसी शाकारके ) पदार्थमें उसके गुणोंका आरोपण करना तदाकार स्थापना है। जैसे अरहंत देवकी
प्रतिमा बनाकर उसमें शास्त्रोक्त पंच कल्याणक विधिसे प्रतिष्ठा कर विधिपूर्वक अरहंत देवके गुणोंका पण करना और फिर उस प्रतिमाको अरहंत मानकर पूजना सो तदाकार वा साकार अथवा सद्भाव स्थापना पूजा है । सो ही लिखा है
सब्भावासबभावा दुविहा ठवणा जिणेहि पण्णत्ता। सायारवंत वत्थुमि जं गुणारोवणं पढमा ॥३८४॥
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