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चर्चासागर
मायाraswadचाहान्तसन्चाLACHAR
केवल अपमेको ही सम्यग्दृष्टि माननेवाले मान्य कितने ही जीव अपनी बुद्धिके बलसे तथा हटसे सामने ॥ खड़े होकर पूजा करनेका उपदेश देते हैं सो वे अपना तथा दूसरोंका दोनों का अकल्याण करते हैं। ऐसे लोग शास्त्रों की बातोंको भी नहीं मानते केवल अपने हटको वृढ़ करते रहते हैं ऐसे लोगोंको जिनवचनका विरोधी ही है समझना चाहिये।
१३८-चर्चा एकसौ अड़तीसवीं प्रश्न-पूजा करनेवालेको बैठकर भगवानकी पूजा करनी चाहिये ऐसा ऊपर लिखा है परन्तु यह कहना उचित नहीं है । क्योंकि खड़े होकर पूजा करना ही उचित है। खड़े होकर पूजा करना विनयका मूल है इसमें भाव अच्छे लगते हैं, भक्ति खूब बढ़ती है, अनुराग खूब बढ़ता है, और मन एकाग्र होकर लग जाता है। इससे अनेक गुण उत्पन्न होते हैं । बैठकर पूजा करना तो किसी प्रकार ठोक नहीं है। किसी साधारण पुरुषकी सेवा भी बैठकर नहीं की जाती है फिर भला तीनों लोकांक नाथ भगवानको पूजा बैठकर किस प्रकार करनी चाहिये । बैठकर पूजा करने में प्रमाय बढ़ता है और अनेक अनर्थ उत्पन्न होते हैं ? इसलिये इस बातको तो हम लोग नहीं मानते हैं।
समाधान--भगवान सर्वज्ञ देवकी आज्ञा तो बैठकर पूजा करने की है सो ही उमास्वामी विरचित उपासकाचारमें लिखा है-- पद्मासनसमासीनो नासाग्रन्यस्तलोचनः । मौनी वस्त्रावृतास्योयं पूजां कुर्याज्जिनेशिनः॥
___ अर्थात्---पूजा करनेवालोंफो नीचे लिखे अनुसार पूजा करनी चाहिये, पूजा करनेवालेको पपासनसे बैठना चाहिये, अपने नेत्रोंकी दृष्टि नासिकाके अग्र भागपर रखनी चाहिये । मौन धारण कर लेना चाहिये, अपना मुख वस्त्रसे ढंक लेना चाहिये । इतने सब काम करके भगवानको पूजा करनी चाहिये । यह ऊपर लिखे श्लोकका अर्थ है । श्रीपानंदि स्वामीने भी अपने पंचविंशतिका महाकाव्यमें लिखा है कि "भव्य जीयोंको मोक्षके सुख प्राप्त करने के लिए पद्मासनसे बेठकर ध्यानाविको भावना करनी चाहिये । यथाचेतोवृत्तिनिरोधनेन करणग्रामं विधायोद्वसं,
तत्संहृत्य गतागतं च मरुतो धैर्य समाश्रित्य च ।