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। पश्चिम, दक्षिण दिशाको ओर मुख करके पूजा करनेवालोंको इस प्रकार बुरा फल प्राप्त होता है। जो लोग। | आग्नेय (पूर्व, दक्षिणके बीच ) कोणको ओर मुख करके पूजा करते हैं उनके प्रतिदिन धनकी हानि होती जाती।
है। जो वायव्य ( उत्तर, पश्चिमके बीच) कोणकी ओर मुख करके पूजा करते हैं उनके सन्तान नहीं होती। जो नैऋत्य विशाको दक्षिण, पश्चिमके बीचको ओर मुख करके भगवानकी पूजा करते हैं उनके कुलका नाश होता है । और जो ईशान दिशाकी ओर ( पूर्व, उत्तरके बीचको ) मुख करके भगवानको पूजा करते हैं उनका
सदा दुर्भाग्य हो रहता है । उनका सौभाग्य सब नष्ट हो जाता है। इसलिए इन दिशाओंको ओर मुख करके । पूजा नहीं करनी चाहिये । यदि किसी कारणसे पूर्व और उत्तर दिशाको ओर मुख करके पूजा करनेको विधिन
बन सके तो पूजा हो नहीं करनी चाहिये । पूर्व, उत्तर विशाको ओर मुख करके ही भगवानको पूजा करनी चाहिये । ऐसा श्रीउमास्वामीने अपने श्रावकाचारमें लिखा है । यथातथार्चकः स्यात्पूर्वस्यामुत्तरस्यां च सन्मुखः। दक्षिणस्यां दिशायां विदिशायां च वर्जयेत् ॥
पश्चिमाभिमुखीभूय पूजां कुर्याज्जिनेशिनाम् । तदास्यात्संततिच्छेदो दक्षिणस्यामसंततिः॥ | आग्नेय्यां चेत्कृता पूजा धनहानिर्दिने दिने । वायव्यां संतति व नैऋत्यां तु कुलक्षयम् ॥
ईशान्यां नैव कर्तव्या पूजा सौभाग्यहारिणी । इस प्रकार वर्णन है । ऐसा समझकर पूर्व और उत्तर दिशाको जोर मुख करके ही भगवानको पूजा करनी चाहिए । बाकोको दिशाओं वा विदिशाओंको ओर मुख करके पूजा करनेमें अनेक दोष आते हैं ऐसा जानकर उन दिशाओंको ओर मुख करके कभी पूजा नहीं करनी चाहिये।
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१. इनके आगे नीचे लिखे श्लोक हैं। पूर्वस्या शांतिपुष्टयर्थमुत्तरेच धनागमः । अहंनो दक्षिणे भागे 'चेत्यानां बंदनं तथा ।
ध्यानं च दक्षिणे भागे दोपस्य च निवेशनम् । अर्थात्-पूर्व दिशाकी ओर मुख करके पूजा करनेसे शांति पुष्टि होटी है और उत्तरको ओर मुख करके पूजा करनेसे धनको वृद्धि होती है। अरहंत देव तथा अरहंतकी प्रतिमाको दायीं ओर खड़े होकर वंदना करनी चाहिये, दायीं ओर ही ध्यान करना चाहिये और दायीं ओर ही दीपक रखना चाहिये।