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चर्चासागर [१४०]
सवो मिस्सो देहो, कवोदवण्णो हवे णियमा।
१३०-चर्चा एकसौ तीसवों प्रश्न-कृष्ण आवि छहों लेश्यावालोंके लक्षण क्या-क्या है ?
समाधान- जिसके अत्यन्त तीन वा भयानक क्रोध हो, जो वैरभावको कभी न छोड़े, परस्पर लड़ाई करने वा युद्ध करनेका जिमका स्वभाव हो, जो बयाधर्मसे सर्वथा रहित हो, हिंसाधर्मको माननेवाला हो, वुष्ट
हो, जो किसी भी गुरुजन वा महापुरुषों के वश न हो, अथवा गुरु आदि महापुरुषोंको आज्ञाके बाह्य हो, 1 गुरुजनोंको आज्ञाको न मानता हो । भावार्थ-निगुरा हो, स्वच्छन्द हो, दीक्षा-शिक्षाका लोप करनेवाला और मनोमति ( मनसे धर्मको अनेक मिथ्या कल्पनाएं करनेवाला ) हो, उन्मत्त हो, यथार्य क्रियाओंके करनेमें। अत्यन्त मंद हो, होनाचारी हो, बुद्धिरहित हो, वर्तमान समयके कार्योंको भी जाननेवाला न हो, जो विज्ञान पांडित्य वा चतुरतासे सर्थपा रहित हो, स्पर्शन आदि समस्त इन्द्रियोंके समस्त विषयों के भोगोपभोगोंमें अत्यन्त लंपटो हो, जो अभिमानी हो, कपटो हो, कुटिल हो, क्रिया करनेमें कुठित वा मैद हो, जिसके अभिप्रायको । कोई दूसरा न जान सके, जो अत्यन्त आलसी हो, इस प्रकार जिसके लक्षण हों, उसे कृष्णलेश्यावाला सम
झना चाहिये। जिसको नींद अधिक आवे, दूसरोंको ठगनेका जिसका स्वभाव हो तया धन-धान्य आदि पदार्थोमें जिसको अत्यन्त तीव्र इच्छा वा लालसा हो उसको नोललेश्यावाला समझना चाहिये। जो दूसरों पर सदा क्रोध करता रहे, अनेक प्रकारसे दूसरोंको पोड़ा देता रहे, जो अत्यन्त शोक वा भय करनेवाला हो, दूसरेके धन-धान्य ऐश्वर्य आविको न देख सके, जो दूसरेका अपमान करता रहे, सदा अपनी प्रशंसा ही करता रहे, दूसरोंको अपने समान पापी, कपटी, मानी समझता हुआ किसीका विश्वास न करे, जो दूसरोंकी हानि-वृद्धिको कुछ न समझे, जो युद्ध में मरना चाहे, जो अपनी प्रशंसा करनेवालोंको बहुतसा यन थेवे और जो कार्यअकार्यको कुछ न गिने उसे कापोतलेश्यावाला समझता चाहिये। जो कार्य-अकार्यको जाने, सेवन करने योग्य और न सेवन करने योग्यको समझे, सबको समान देखे, जो दयाल परुषोंपर प्रेम करे, जो मनसे बचनसे. कायसे सब तरहसे कोमल हो, उसे पोतलेश्यावाला समझना चाहिये। जो पापोंका त्यागी हो, भद्रपरिणामो । हो, उसम-उत्तम कार्य करनेरूप ही जिसका स्वभाव हो, शुभकार्योंके लिए उद्योग करमा हो जिसका कर्तव्य हो,
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