________________
भावार्थ-उस ऋद्धिका ऐसा ही माहात्म्य है कि जिसके होते तये जलमें, स्थलमें, अग्निमें, वृक्षोंपर, ! । फलोंपर, पत्रोंपर, पुष्पोंपर वा तन्तुओं पर कहीं पर गमन करें परन्तु उनके शरोरसे किसी भी सूक्ष्म वा स्थूल चासागर जीवको किसी प्रकारको बाषा नहीं होती है। लिखो भी है११३८ । परिहारद्धिसमेतः जीवः षट्कायसंकुले विहरन् । पयसेव पद्मपत्रं न लिप्यते पापनिवहेन ॥
यही वर्णन श्रीगोमट्टसारके संयम मार्गणा अधिकार में लिखा है। । तीसं वासो जम्मेवासपुंधत्तं खुतित्थयरमूले। पञ्चक्खाणं पढिदो संझूणदुगाउयविहारो॥४७३ ।।
१२५-चर्चा एकसौ पच्चीसवीं प्रश्न-इन्द्रियों के विषय कहीं सेईस कहे हैं और कहीं सत्ताईस कहे हैं सो इनमें विशेषता क्या है ? |
समाषान-पाँचों इम्नियोंके तथा मनके विषय सब मिलकर अट्ठाईस हैं । तेईस तो सामान्य हैं और ॥ । सत्ताईस वा अट्ठाईस विशेष हैं। वे भेद इस प्रकार हैं। खट्टा, मोठा, कषायला, कड़वा और तीक्ष्ण वा घर
स रसना इन्द्रियों के विषय है। इन पांचों विषयोंको यह जीव रसना इन्द्रियोंके द्वारा जानता है। सफेव, पीला, हरा, लाल, काला ये पांच वर्ण नेत्र इन्द्रियके विषय हैं । सुगंध और घुगंध ये वो गंध नासिका इंद्रियके विषय हैं । हलका, भारी, नरम, कठोर, ठंडा, गरम, रूखा, चिकना, ये आठ स्पर्श स्पर्शन इन्द्रियके । विषय हैं तथा सचेतन, अचेतन, मिश्र ये तीन प्रकारके शब्द श्रोत्र वा कर्ण इंद्रियके विषय है। तथा इन्हीं शब्दोंके स्वरोंकी अपेक्षा सात भेव होते हैं। निषाद, ऋषभ, गांधार, षडज, मध्यम, धैवत, पंचम । यदि तीन स्वरों, के बदले ये सात मिला दिये जाय तो तेईसके बदले सत्ताईस भेव हो जाते हैं। इनमें अनेक विकल्प करनेरूप मनका विषय मिला वेनेसे सैनी पंधेंद्रियके सब अट्ठाईस विषय हो जाते हैं। सो ही गोम्मटसारमें संयम मार्गणाविकारमें लिखा है--
पंचरसपंचवण्णा दो गंधा अटफाससत्तसरा । मणसहिदट्ठावीसा इंदियविसया मुणेदव्वा ॥ ४७६ ॥
GHODERARTHATREATM